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शारदीय नवरात्रि:संधि पूजा का बड़ा महत्व

डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
बिलासपुर (छतीसगढ़)
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माता के नौ रंग (नवरात्रि विशेष)….

शरद ऋतु की मृदु बयार, भोर के समय फूलों, पत्तों और दूब पर शिशिर या ओस की बूंदें, सिउली पुष्पों का झड़ना, ९ दिन तक शक्ति की उपासना या ५ दिन तक दुर्गोत्सव की धूम। उल्लास और उमंग भरे नौ दिन। गुजरात और पश्चिम भारत में रंग-बिरंगी चनिया चोली और पारंपरिक वेशभूषा में गरबा या डांडिया नृत्य, उत्तर-मध्य भारत और छत्तीसगढ़ में जस गीत की लोक धुन, बंगाल, असम और पूर्वी क्षेत्र में आगोमोनी के सुमधुर गीत, ढाक-ढोल की थाप, कासर घंटे और शंख ध्वनि की गूँज पर महाआरती और धुनुची नृत्य की छटा देखते ही बनती है। हर घर मानो पूजामय हो उठता है। अपनी- अपनी आस्था लिए लोग नए परिधानों में सज-धज कर इस पवित्र त्यौहार में पूजा-अर्चना, व्रत-उपासना, पुष्पांजलि, फल, मिष्ठान और खिचड़ी भोग प्रसाद का वितरण कर या ९ दिन तक कठिन व्रत रखकर महाअष्टमी और महानवमी के दिन कन्या पूजन कर कन्या भोज करवा कर व्रत खोलते हैं। भारत के लगभग हर प्रदेश में इस त्यौहार को विविध प्रकार से मनाया जाता है।
नवरात्रि वैसे वर्ष में ३ बार मनाई जाती है-चैत्र नवरात्रि, शारदीय नवरात्रि और गुप्त नवरात्रि। उत्सव और धार्मिक महत्ता की दृष्टि से शारदीय नवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। बंगाल में यह मान्यता है कि, माँ दुर्गा अपनी दोनों पुत्रियों और २ पुत्रों के साथ ५ दिन के लिए मायके आई है। इसीलिए इस पर्व को यहाँ पूजा के साथ उत्सव के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि बेटी के स्वागत में मायके में उनके पुत्र- पुत्रियों का भरपूर आदर-दुलार किया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस समय देवी-देवता शयन की अवस्था में रहते हैं। श्रीराम जी ने माँ दुर्गा का आव्हान कर शयनकाल में उनकी पूजा की, इसीलिए इसको अकाल बोधन नवरात्रि भी कहा जाता है। संधि पूजा इस पूजा की एक बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ी है। शारदीय नवरात्रि में संधि पूजा अष्टमी और नवमी तिथि के मध्य की जाती है। अष्टमी तिथि के आखरी २४ और नवमी आरम्भ होने के २४ मिनिट तक यह पूजन होती है। यह माना जाता है कि, जिस समय माँ चामुंडा और महिषासुर के बीच भयंकर युद्ध हो रहा था, उस समय चण्ड और मुण्ड नामक २ राक्षसों ने माता चामुंडा की पीठ पर वार कर दिया था, जिसके बाद माता का मुँह क्रोध से नीला पड़ गया था, और माता ने दोनों का वध किया था।इसी वध के समय को संधि काल कहा गया। इस ४८ मिनिट में माँ की पूजा- अर्चना-आरती कर सफेद कुम्हड़ा की बलि दी जाती है।
दूसरी मान्यता के अनुसार श्रीराम जी जब रावण वध के पहले माँ दुर्गा की उपासना कर रहे थे, तो पूजा के लिए १०८ दीपक प्रज्वलित कर और १०८ कमल के फूल माँ दुर्गा को अर्पण करने के लिए बैठे। तब कमल का १ फूल कम पढ़ गया, तब श्रीराम जी अपना तीसरा नेत्र माँ को अर्पण करने लगे तो, देवी माँ प्रकट हुई और उन्होंने ऐसा करने से रोक लिया एवं विजयी होने का आशीर्वाद प्रदान किया। इसी कथा के अनुसार आज भी संधि पूजा में माँ दुर्गा को १०८ कमल के फूल और १०८ दीप प्रज्वलित कर किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
माँ भगवती के आशीर्वाद से विश्व में सकारात्मक ऊर्जा एवं नव शक्ति का संचार हो, शक्ति की आराधना के पावन पर्व में एकता, समता, बंधुत्व, प्रेम, समरसता की भावना का चहुँओर विकास हो, लोक कल्याण का पथ प्रशस्त हो एवं माँ दुर्गा की कृपा समस्त जग में परिलक्षित हो।

परिचय- शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक (अंग्रेजी) के रूप में कार्यरत डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती वर्तमान में छतीसगढ़ राज्य के बिलासपुर में निवासरत हैं। आपने प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर एवं माध्यमिक शिक्षा भोपाल से प्राप्त की है। भोपाल से ही स्नातक और रायपुर से स्नातकोत्तर करके गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (बिलासपुर) से पीएच-डी. की उपाधि पाई है। अंग्रेजी साहित्य में लिखने वाले भारतीय लेखकों पर डाॅ. चक्रवर्ती ने विशेष रूप से शोध पत्र लिखे व अध्ययन किया है। २०१५ से अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय (बिलासपुर) में अनुसंधान पर्यवेक्षक के रूप में कार्यरत हैं। ४ शोधकर्ता इनके मार्गदर्शन में कार्य कर रहे हैं। करीब ३४ वर्ष से शिक्षा कार्य से जुडी डॉ. चक्रवर्ती के शोध-पत्र (अनेक विषय) एवं लेख अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय पत्रिकाओं और पुस्तकों में प्रकाशित हुए हैं। आपकी रुचि का क्षेत्र-हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला में कविता लेखन, पाठ, लघु कहानी लेखन, मूल उद्धरण लिखना, कहानी सुनाना है। विविध कलाओं में पारंगत डॉ. चक्रवर्ती शैक्षणिक गतिविधियों के लिए कई संस्थाओं में सक्रिय सदस्य हैं तो सामाजिक गतिविधियों के लिए रोटरी इंटरनेशनल आदि में सक्रिय सदस्य हैं।