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शीत में इस अगन बन के

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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रचना शिल्प:२१२२ २१२२…..

तुम सुबह की किरन बन के,
और मध्यम पवन बन के
तोड़ सीमा आज आओ,
शीत में इस अगन बन के।

पुंज प्रकाशित शिखर लौ,
दिव्य मेरे मुख चमक तुम
दीप की ये ज्योति अनुपम,
शब्द तुम मै बयन बन के।

हंस तुम आकाश उड़ते,
पांख मैं तुझमें लगी सी
पार नभ के उड़ चले हम,
साथ मेरे नयन बन के।

मेघ धनु तुम सप्त रंगी,
मैं दिशा दस चमक तेरी
दीप्त कर दे प्रति कोना,
मैं धरा तुम गगन बन के।

मैं खिलूँ अपराजिता-सी,
मंडराओ तुम मधुप बन
घेर लो बन बेल-बूटे,
साथ महके चमन बन के॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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