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संघर्ष ही जीवन

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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जीवन इक संघर्ष है,कर्म करो इंसान।
बिना कर्म के कुछ नहीं,है यह प्रकृति विधान॥

रोके क्या कठिनाइयाँ,हिमगिरि या तूफान।
बढ़ते जाना है हमें,अपना सीना तान॥

सुख-दु:ख दोनों साथ में,रहते हैं गठजोड़।
बच पाते कोई नहीं,जो दे जीवन मोड़॥

आलस जीवन मृत्यु सम,प्रगति मार्ग अवरोध।
साहस संयम धैर्य हो,नहीं किसी पर क्रोध॥

मिले नहीं संघर्ष बिन,जीवन में सुख चार।
बिना कर्म कुछ भी नहीं,नहीं स्वप्न साकार॥

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