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संतोष हो

सपना सी.पी. साहू ‘स्वप्निल’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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इच्छा नहीं मेरी आपसे अलग ख्याति हो,
आप भीड़ में पहचान लें, तो संतोष हो।

रिश्ते अपनापन जताकर पराया करते,
आप पराए को अपना लें, तो संतोष हो।

जिसने जैसा सुना-देखा, उतना ही जाना,
आप सही आंकलन कर सकें, तो संतोष हो।

जिसको जब जरूरत पड़ी काम में लिया,
आप बिन काम के याद रखें, तो संतोष हो।

दिन लंबे कटते नहीं, समय फिसल रहा,
आप समय पर साथ दे दें, तो संतोष हो।

जिदंगी की भागम-भाग में हार-जीत लगी,
आप हारने पर भी साथ रहें, तो संतोष हो।

कटुता सिर्फ इस जीवनकाल के लिए है,
आप जिदंगी मिठास से भरें, तो संतोष हो।

प्रभु मिलन हेतु धरा-सा धैर्य आवश्यक,
आप ऐसा धीरज धर सकें, तो संतोष हो।

मैं अक्सर इस मिट्टी से लाड़ लड़ाती हूँ,
मिट्टी मुझे अपने में समा ले, तो संतोष हो॥