कुल पृष्ठ दर्शन : 383

You are currently viewing संवेदना खो गई

संवेदना खो गई

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
*****************************************

अरे भाई,न जाने इस भूपटल पर,
क्यों आज संवेदनाएं खो गई है ?
विकल-व्यथित है बच्चा-बच्चा,
समूची मानवता क्यों रो रही है ?

मानव-मानस में सिर्फ स्पर्धाएं रह गई,
सारा संवेदन खो गया
आदमी,आदमी से लड़-भिड़ रहा है,
न जाने यह क्या हो गया ?

कहां तो थे यहां चौरासी से ऊपर,
मानव-मानस के कोमल भाव
परहित में अपनी जानें गंवा दी,
अब कहां गया वह मानव पड़ाव ?

महल-अटालिकाएं खूब बनाई,
भाई-भाई में रहा न संवेदन-प्रेम
ब्याहता बहनें पराई हो गई अब,
कौन पूछता है, उनका योग-क्षेम ?

सास-ससुर से छुटकारा हो कैसे ?
बहू-बेटियाँ भी ऐसा चाहती हैं
जब बूढ़ों को ठुकराते बेटे उनके,
तब मानव संवेदना शर्मसार हो जाती है।

धान में सुलगी आग आज तो,
पराल भी कल जल जाएगा
न जाने इन पश्चिम के अनुयायियों को,
यह सत्य समझ कब आएगा ?

संवेदनहीन मानव ‘मानव’ कहां फिर ?
वह पशु से भी बड़ा ढोर बन जाएगा।
यूँ गिरता मानव-मानस कल तक,
समाज को, गर्त में ही ले जाएगा॥

Leave a Reply