रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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जीना जैसे पिता….
ऐ दोस्त !
किस बिना पर तुम सच्ची दोस्ती का दम भरते हो,
मैंने तो जाना है सच्चा दोस्त पिता के सिवा कोई नहीं।
जिन्हें मुझसे न कुछ पाने की चाह,
न ही कुछ लेने की चाह
बस देने की चाह,
दुनिया की हर खुशी
मेरे दामन मे भरने की चाह,
मेरी जरूरत ही नहीं,
बल्कि मेरी इच्छाओं को पूरी करने की चाह
अपनी इच्छाओं को मेरी इच्छा में वार देने की चाह,
खुद भूखा रहकर भी मेरा पेट भरने की चाह
मत विरोध होने पर भी खुद ही झुक जाने की चाह।
खुद अकेले जीवन जिया,
पर मुझे अकेलेंपन का न अहसास होने दिया
आज उनसे दूर मैं ढ़ूढता फिरता हूँ अपना दोस्त,
पर जब भी सोचता हूँ, उनसा कोई सच्चा दोस्त न पाता हूँ।
भले ही वह दूर हों मुझसे,
पर रूह से हम एक हैं
भले ही वक्त ने कर दी दूरी हमारे दरमियान,
पर आज भी एक जान एक धड़कन है हमारी मुझसे पूछो अगर सच्चे प्यार की परिभाषा,
तो मैं कहूँगा सच्चा प्यार छिपा रहता है
‘पिता’ शब्द में,
माता के आँचल में॥