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पाती पिता के नाम

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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जीना जैसे पिता…


याद आपकी जब आती,
आँखों से आँसू झरते हैं
क्रूर नियति ने छीना क्यों ?
हर पल ये सोचा करते हैं।

चंदन बनकर आपने ही,
मेरे जीवन को महकाया
मेरे लिए वटवृक्ष बने थे,
शीतलता की दी थी ‌‍छाया।
इस दुनिया से चले गए,
मेरे मन-मंदिर में बसते हैं।

स्वेद को वे पोंछ बाँह से,
हरदम हॅंसते रहते थे
अपना तो संबल थे वो,
दीपक-सा जलते रहते थे।
कौन देश हो चल गए,
सब चुपचाप से लगते हैं।

जीवन के सब रंग दिखाए
जीने के गुण भी सिखलाए
अनुशासन का पाठ पढ़ाया,
त्याग, समर्पण भी समझाए।
आप-सा गुरु नहीं मिलेगा,
हम लिख-लिख पाती भेजते हैं।

थे विशाल, महाकाय आप,
धीर-वीर-गंभीर सत्यप्रिय
नहीं किसी से डरते थे,
बहुत श्रमी थे और कर्मप्रिय ।
आपके चरणों में पिताश्री,
श्रद्धा-सुमन हम अर्पित करते हैं।
याद आपकी जब आती,
आँखों से आँसू झरते हैं॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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