कुल पृष्ठ दर्शन : 8

सतरंगी दुनिया

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’
सोलन (हिमाचल प्रदेश)
*****************************************************

प्रेशर कुकर कितना भी पुराना हो जाए, वो कभी भी सीटी मारना नहीं छोड़ता है। इसी प्रकार शेर कितना भी बूढ़ा हो जाए, मांस ही खाएगा;कभी घास नहीं खाएगा। सभी अपनी-अपनी आदत से मजबूर हैं। झूठ बोलना भी एक कला है, आजकल बहुत काम आती है। इसमें इंसान अपने ही बुने जाल में फँसता भी खुद है और उलझता भी खुद है। कभी किसी को उधार मत दो, उधार देने के बाद लेने वाला राजा हो जाता है और देने वाला भिखारी। हर आदमी बड़ा व्यक्ति बनना चाहता है, मेरे हिसाब से अच्छा आद‌मी बनना उससे बड़ी बात है।
विद्यालय के बाहर एक बोर्ड लगा था, “कृपया गाड़ी धीरे चलाएं, ताकि बच्चे कुचलने न पाएं।” एक शरारती छात्र ने आकर बोर्ड पर एक और लाईन जोड़ दी, “और अध्यापक बचने न पाए।”
आज एक अजीब घटना सामने आई-वृद्धाश्रम में एक युवक अपने माता-पिता को छोड़ने आया और उसने अपना नाम श्रवण कु‌मार बताया। हमारे पड़ोसी गुप्ता जी सुबह-शाम गीता का नाम लेते थे। उनकी हर बात में गीता होती थी। मुझे लगा बहुत धार्मिक व्यक्ति है, परन्तु बाद में पता चला, गीता उनकी पत्नी का नाम है।
कुछ लोग मुझे बहुत चाहते हैं, इसलिए कुछ लोग मुझे नहीं चाहते हैं। अपनी ज़िंदगी में एक अच्छा मित्र जरूर रखें, क्योंकि जब दुनिया नहीं सुनती, तब वो बैठकर सुनता है। सुख और दु:ख का रिश्ता चाँद और सूरज जैसा है, दोनों में से कोई एक ही रहता है। सुख मनुष्य को नाव बनाना सिखाता है और दु:ख आपको तैरना सिखाता है। सेल्फी के साथ-साथ दूसरों का दर्द भी खींचें। इससे संसार भी आपको पसंद (लाईक) करेगा और ईश्वर भी।
कहते हैं कि आदमी दारू पीकर सच बोलता है तो मेरे ख्याल से अदालत में कसम की जगह गवाह को दारू पिलानी चाहिए, ताकि वह घटना पर अच्छी तरह से रोशनी डाले। एक छोटा बच्चा स्टेशन पर चाय बेच रहा था। मैंने उससे कारण पूछा, उसने बताया-प्रधानमंत्री बनने की दिशा में पहला कदम उठा रहा हूँ। आप जिंदा रहते हुए दुखों से मर जाएँ, परन्तु मरने के बाद सुख दिलवाने का ठेका सभी धर्मों के पास है।
आजकल मोबाईल के बिना आदमी ऐसा हो जाता है, जैसे आक्सीजन पर चल रहा हो। बुखार आने पर द‌वा लेने में हम २ दिन लगा देते हैं, परन्तु मोबाइल की बैटरी डाऊन होने से पहले उसको चार्जिंग पर लगा देते हैं।
अब सोने में गिरावट आ गई है, भारी गिरावट-पहले लोग ८-१० घंटे सोते थे। अब वाट्सअप, फेसबुक और इंस्टाग्राम के चक्कर में ४ घंटे ही सो पाते हैं।
लोग कहते हैं कि “कानून अंधा है” इसलिए मैं सोच रहा हूँ कि मरने के बाद अपनी दोनों आँख कानून को दान कर जाऊँ, ताकि कानून देखने वाला बन सके। देश का कानून भी गांधारी की तरह अपनी आँख पर पट्टी चढ़ा के बैठा है।
अंधे कानून को भी हमने देखते पाया है, ज़ब उसको लक्ष्मी का भोग लगाया है।

परिचय-डॉ. प्रताप मोहन का लेखन जगत में ‘भारतीय’ नाम है। १५ जून १९६२ को कटनी (म.प्र.)में अवतरित हुए डॉ. मोहन का वर्तमान में जिला सोलन स्थित चक्का रोड, बद्दी (हि.प्र.)में बसेरा है। आपका स्थाई पता स्थाई पता हिमाचल प्रदेश ही है। सिंधी,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. मोहन ने बीएससी सहित आर.एम.पी.,एन. डी.,बी.ई.एम.एस., एम.ए., एल.एल.बी.,सी. एच.आर.,सी.ए.एफ.ई. तथा एम.पी.ए. की शिक्षा भी प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र में दवा व्यवसायी ‘भारतीय’ सामाजिक गतिविधि में सिंधी भाषा-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रचार करने सहित थैलेसीमिया बीमारी के प्रति समाज में जागृति फैलाते हैं। इनकी लेखन विधा-क्षणिका, व्यंग्य लेख एवं ग़ज़ल है। कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। ‘उजाले की ओर’ व्यंग्य संग्रह प्रकाशित है। आपको राजस्थान से ‘काव्य कलपज्ञ’,उ.प्र. द्वारा ‘हिन्दी भूषण श्री’ की उपाधि एवं हि.प्र. से ‘सुमेधा श्री २०१९’ सम्मान दिया गया है। विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अध्यक्ष (सिंधुडी संस्था)होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य का सृजन करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं प्रेरणापुंज-प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले,हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को हम हिंदी भाषा का ज्ञान दें, ताकि हिंदी भाषा का समुचित विकास हो सके।”