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सद साहित्य को समर्पित आयोजनों की आज व्यापक आवश्यकता

काव्य गोष्ठी..

सोनीपत (हरियाणा)।

सद साहित्य और सनातन संस्कृति को समर्पित इस प्रयास में जो सातत्य और समर्पण है, वह आज के समाज में दुर्लभ है। ऐसे आयोजनों की आज व्यापक आवश्यकता है।
सहारनपुर (उप्र) के वरिष्ठ साहित्यकार सुनील कुमार खुराना ने मुख्य अतिथि के नाते यह बात सद साहित्य, सनातन संस्कृति और सांस्कृतिक चेतना के नवप्रवाह की मिसाल बनी २०४वीं साप्ताहिक काव्य गोष्ठी में कही। संवाद प्रभारी श्रीमती ज्योति राघव सिंह ने बताया कि अनुभूतिपरक क्षणों का साक्षी बना कल्पकथा साहित्य संस्था का यह आभासी साप्ताहिक आयोजन हरिशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु एवं शंकर जी की भक्तिपूर्ण आराधना को समर्पित रहा। शुभारंभ नागपुर से जुड़े वरिष्ठ सृजनकार विजय रघुनाथराव डांगे द्वारा संगीतमयी गुरु वंदना, गणेश वंदना एवं सरस्वती वंदना के मधुर स्वरों से हुआ।
कार्यक्रम में भोलेनाथ की सती त्याग लीला, श्रीहरि की शयन यात्रा, कृष्ण और भोलेनाथ के हरिहर स्वरूप आदि पर आधारित रचनाओं ने रस, छंद और अलंकार के विविध सोपानों पर साहित्य को सुसज्जित किया। मंच पर प्रस्तुत कवियों की रचनाएँ आध्यात्मिकता, राष्ट्रप्रेम और लोकजीवन की अनुभूतियों से अभिसिंचित रहीं।
गोष्ठी की अध्यक्षता बेंगलुरु से जुड़े विद्वान साहित्यकार डॉ. अनिल कुमार उपाध्याय ने की। उन्होंने कहा कि कल्पकथा की यह श्रृंखला केवल काव्य प्रस्तुति नहीं, अपितु सनातन संस्कृति के जीवंत प्रवाह की पुनःस्थापना है।
कार्यक्रम में रोचक धार्मिक प्रश्नोत्तरी विशेष आकर्षण का केंद्र रही। पं. अवधेश प्रसाद मिश्र ‘मधुप’ ने कैमूर (बिहार) स्थित मुण्डेश्वरी माता मंदिर की तीर्थयात्रा का संक्षिप्त वृतांत प्रस्तुत किया, जो साहित्य साधकों को भावविभोर कर गया।
आयोजन में अनेक राज्यों से जुड़े साहित्यकारों में श्रीमती कविता नेमा ‘काव्या’, श्रीमती ज्योति प्यासी, साधना मिश्रा, नंदकिशोर बहुखंडी व प्रमोद पटले आदि सम्मिलित रहे।

समापन पर संस्था संस्थापक पवनेश मिश्रा ने कि जब हम साहित्य में धर्म और श्रद्धा के स्वर पिरोते हैं, तब ही वह जीवनोपयोगी बनता है। आपने कृतज्ञतापूर्वक आभार ज्ञापित किया। गोष्ठी का संचालन आशु कवि भास्कर सिंह ‘माणिक’ एवं श्रीमती राधाश्री शर्मा ने भावप्रधान शैली में संयोजन करते हुए किया।