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सभी पर्वों का राजा पर्यूषण पर्व

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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दसलक्षण पर्व-उत्तम क्षमा (१०सितम्बर)विशेष…

यह सभी पर्वों का राजा है। इसे आत्मशोधन का पर्व भी कहा गया है,जिसमें तप कर कर्मों की निर्जरा कर अपनी काया को निर्मल बनाया जा सकता है। पर्यूषण पर्व को आध्यात्मिक दीवाली की भी संज्ञा दी गई है।
दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है। जैन धर्म का संस्थापक ऋषभ देव को माना जाता है( जैन धर्म के पहले तीर्थंकर),जो भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे। जैन संस्कृति में जितने भी पर्व व त्योहार मनाए जाते हैं,लगभग सभी में तप एवं साधना का विशेष महत्व है। जैनों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है पर्यूषण पर्व। इसका शाब्दिक अर्थ है-आत्मा में अवस्थित होना। पर्यूषण का एक अर्थ है-कर्मों का नाश करना। कर्मरूपी शत्रुओं का नाश होगा,तभी आत्मा अपने स्वरुप में अवस्थित होगी अतः यह पर्यूषण-पर्व आत्मा का आत्मा में निवास करने की प्रेरणा देता है।
जिस तरह दीवाली पर व्यापारी अपने संपूर्ण वर्ष का आय-व्यय का पूरा हिसाब करते हैं,गृहस्थ अपने घरों की साफ−सफाई करते हैं,उसी तरह पर्यूषण पर्व के आने पर जैन धर्म को मानने वाले लोग अपने वर्ष भर के पुण्य-पाप का पूरा हिसाब करते हैं। वे अपनी आत्मा पर लगे कर्म रूपी मैल की साफ-सफाई करते हैं। पर्यूषण महापर्व मात्र जैनों का पर्व नहीं,यह सार्वभौम पर्व है। पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है,क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना की जाती है। संपूर्ण संसार में यही एक ऐसा उत्सव या पर्व है,जिसमें आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है व अलौकिक,आध्यात्मिक आनंद के शिखर पर आरोहण करता हुआ मोक्षगामी होने का सद्प्रयास करता है।
पर्यूषण आत्म जागरण का संदेश देता है और हमारी सोई हुई आत्मा को जगाता है। यह आत्मा द्वारा आत्मा को पहचानने की शक्ति देता है।पर्यूषण पर्व जैन धर्मावलंबियों का आध्यात्मिक त्योहार है। पर्व शुरू होने के साथ ही ऐसा लगता है मानो किसी ने दस धर्मों की माला बना दी हो। यह पर्व मैत्री और शांति का पर्व है। जैन धर्मावलंबी भाद्रपद मास में पर्यूषण पर्व मनाते हैं। श्वेताम्बर संप्रदाय के पर्यूषण ८ दिन चलते हैं। उसके बाद दिगंबर संप्रदाय वाले १० दिन तक पर्यूषण मनाते( दस लक्षण नाम भी)हैं। यह पर्व अपने आपमें ही क्षमा का पर्व है। इसलिए,जिस किसी से भी बैर-भाव है,उससे शुद्ध हृदय से क्षमा मांग कर मैत्रीपूर्ण व्यवहार करें।
भारतीय संस्कृति का मूल आधार तप,त्याग और संयम है। संसार के सारे तीर्थ जिस प्रकार समुद्र में समाहित हो जाते हैं,उसी प्रकार दुनियाभर के संयम, सदाचार एवं शील ब्रह्मचर्य में समाहित हो जाते हैं। मानव की सोई हुई अन्तः चेतना को जागृत करने, आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार,सामाजिक सद्भावना एवं सर्व-धर्म समभाव के कथन को बल प्रदान करने के लिए पर्यूषण पर्व मनाया जाता है।
जैन धर्म में दस दिवसीय पर्यूषण पर्व ऐसा पर्व है जो उत्तम क्षमा से प्रारंभ होता है और क्षमा वाणी पर ही समापन होता है। क्षमा वाणी शब्द का सीधा अर्थ है कि व्यक्ति और उसकी वाणी में क्रोध,बैर, अभिमान,कपट व लोभ न हो।
महत्वपूर्ण पर्व दशलक्षण संयम और आत्मशुद्धि का संदेश देता है। इन १० लक्षणों का पालन करने हेतु जैन धर्म में साल में ३ बार दसलक्षण पर्व-चैत्र शुक्ल ५ से १४ तक,भाद्र शुक्ल ५ से १४ तक और माघ शुक्ल ५ से १४ तक मनाया जाता है। इन १० दिनों में श्रावक अपनी शक्ति अनुसार व्रत-उपवास आदि करते हैं। ज्यादा से ज्यादा समय भगवान की पूजा-अर्चना में व्यतीत किया जाता है।
१० लक्षण हैं-उत्तम क्षमा,उत्तम मार्दव,उत्तम आर्जव, उत्तम शौच,उत्तम सत्य,उत्तम संयम,उत्तम तप,उत्तम त्याग,उत्तम अकिंचन्य व उत्तम ब्रहमचर्य। कहते हैं जो इन १० लक्षणों का अच्छी तरह से पालन कर ले,उसे इस संसार से मुक्ति मिल सकती है,पर सांसारिक जीवन का निर्वाह करने में हर समय इन नियमों का पालन करना मुश्किल हो जाता है। इन कर्मों का प्रक्षालन करने के लिए श्रावक उत्तम क्षमा आदि धर्मों का पालन करते हैं।
पर्यूषण पर्व की समाप्ति पर जैन धर्मावलंबी अपने यहां पर क्षमा की विजय पताका फहराते हैं और फिर उसी मार्ग पर चलकर अपने अगले भव को सुधारने का प्रयत्न करते हैं। आइए! हम सभी अपने राग,द्वेष और कषायों को त्याग कर भगवान महावीर के दिखाए मार्ग पर चलकर विश्व में अहिंसा और शांति का ध्वज फैलाएं। क्षमा करें और कराएं।
उत्तम क्षमा धर्म हमारी आत्मा को सही राह खोजने में और क्षमा को जीवन और व्यवहार में लाना सिखाता है। सबको क्षमा,सबसे क्षमा।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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