प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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भक्ति, संस्कृति एवं समृद्धि की प्रतीक हिंदी (हिन्दी दिवस विशेष)…
हिन्दी आज दुनिया की एक महत्वपूर्ण भाषा बन गयी है। आज १२७ देशों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। दुनिया के लगभग सभी देशों में हमारे दूतावास हैं। अन्य देशों के भी दूतावास हमारे देश में हैं। इनमें से कई दूतावासों में अब हिन्दी विभाग की स्थापना हो चुकी है, जहाँ हिन्दी अधिकारी, अनुवादक, पत्राचार, समाचार, रिपोर्ट लेखन आदि अनेक प्रकार के रोज़गार उपलब्ध हैं। भूमंडलीकरण के इस युग में आज दुनिया बिलकुल नज़दीक आ गई है। भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में अनेक विदेशी कंपनियाँ एक-दूसरे से जुड़ी हैं। हिन्दी आज तीसरे क्रम पर विश्व के हर कोने में बोली जाने भाषा है। एक भक्त ईश्वर की भक्ति में जब लीन होता है तो अपनी भक्ति का प्रदर्शन भक्ति गीत गाकर सुर, लय, ताल, छंद आदि के साथ हिन्दी भाषा में ही करता है और अपनी व्यथा ईश्वर के समक्ष रखता है। भक्ति रस हो, अलंकार, दोहे, चुटकुले, कहानियाँ, कविता छंद आदि सभी का रस लेना हो तो हिन्दी में ही उसका आनंद आता है।
हमें सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए। अंग्रेज़ी हमारे काम-काज की भाषा है, तो उसे काम-काज तक ही सीमित रखना चाहिए। उसे अपनी मातृभाषा न बनाएं। हमारी मातृभाषा हिन्दी है तो अधिक से अधिक इस भाषा को बोलें, इसका प्रयोग करें। हिन्द से ही हिंदुस्तान बना है। हमारा भारत देश ऐसे ही महान देश नहीं कहलाता है। ये ऋषि-मुनियों का देश कहलाता है। अनेक बड़े-बड़े रचनाकारों ने इस भूमि पर जन्म लिया, जिन्होंने रामायण, वेद, महाभारत, पुराण की रचना संस्कृत और हिन्दी भाषा के साथ- साथ अन्य भाषाओं में भी की है।
संस्कृत भाषा से हिन्दी भाषा की उत्पत्ति हुई है। संस्कृत से ही हमारी संस्कृति झलकती है। आज भारतीय पश्चिमी सभ्यता के जाल में दिन-ब-दिन इस सीमा तक फँसते जा रहे हैं कि अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। पश्चिम से आई हर चीज़ चाहे वह उनका बोलने-चलने का ढंग हो या कपड़े पहनने का तरीक़ा, वहाँ का ख़ान- पान हो या वहाँ के त्योहार, हम सभी वह सब अपनाने में अपनी शान समझते हैं। बिना यह सोचे समझे कि वह हमारे देश, समाज और जलवायु के अनुकूल है या नहीं, उसे अपना लेते हैं। पश्चिमी सभ्यता हमेशा सदा से ‘खाओ, पीयो और आनंद मनाओ’ के सिद्धांत को मानती आई है। आज पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करके हम दुख के भागी बन रहे हैं।हमें पश्चिमी सभ्यता का आकर्षण छोड़कर अपनी हिन्दी, संस्कृति, और मूल्यों का अनुसरण करना चाहिए। आज की इस आधुनिक दुनिया में माता-पिता द्वारा बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ाना अपने-आपमें गर्व की बात बन गई है। इसलिए आज माँ ‘मॉम’ और पिता ‘पॉप्स’ बन गए हैं, जिसके कारण बच्चों में अपने माता-पिता के प्रति भावनात्मक प्रेम ख़त्म होते दिख रहा है।
हिन्दी हमारी मातृभाषा है, उसे हमें नहीं भूलना चाहिए। वह हमारी धरोहर है, हमारी एकता, जान, मान की शान है। आदिकाल से लेकर भक्तिकाल, आधुनिककाल से लेकर आज तक हिन्दी भाषा चली आ रही है, जो हमारी परंपरा बन गई है। हिन्दी हमारी समृद्धि का प्रतीक है।