संजय जैन
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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बचपन खोकर आई जवानी,
साथ में लाई रंग अनेक
दिलको दिलसे मिलाने को,
देखो आ गई अब ये जवानी
अंग-अंग अब मेरा फाड़कता,
आता जब सावन का महीना
नए-नए जोड़ों को देखकर,
मेरा भी दिल खिल उठता।
अंदर की इंद्रियों पर अब,
नहीं चल रहा मेरा बस
नया-नया यौवन जो अब,
अंदर ही अंदर खिल रहा
तभी तो ये दिल की पीड़ा,
अब और सही नहीं जा रही
ऊपर से सहेली की नई बातें,
दिल में आग लगा रही हैं।
कैसे अपने मन को समझाएं,
दिल की पीड़ा किसे बताएं
रात-रात भर हमें जगाए,
रंगीन सपनों में ले जाए
भरकर बाँहों में अपनी वो,
प्रेम रस दिल में बरसाए
और मोहब्बत को अपनी
हमारे दिल को दिखलाए।
सच में ये सावन का महीना,
आग लगाकर रखता मन में
और न ये बुझाने देता है,
अंतरमन की आग को
कभी-कभी खुद के स्पर्श से,
खिल जाती दिल की बगिया।
फिर बैचेनी दिल की बढ़ जाती,
मनभावन की खोज में॥
परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।