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साहित्यकार आत्ममुग्धता से बचें

भोपाल (मप्र)।

लघुकथा पाठ…

साहित्यकार आज हड़बड़ी में है। आज लिखा कल प्रकाशित, परसों पुरस्कार, जबकि लेखन एक सतत प्रक्रिया है निरंतर अध्ययन, चिंतन, मनन और साधना की। इसमें लेखक आत्ममुग्धता से बचते हुए असहमतियों का सम्मान करना सीखें। लेखक यदि पहले पढ़ेगा, फिर गढ़ेगा, अपना समीक्षक और सम्पादक बनेगा तो रचना में निश्चित पाठक पर प्रभाव पड़ेगा।
यह उद्गार वरिष्ठ साहित्यकार गोविंद शर्मा (खंडवा) ने लघुकथा शोध केंद्र समिति द्वारा आयोजित साप्ताहिक आभासी लघुकथा गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए।
इस कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन समिति की निदेशक कांता रॉय ने दिया। उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर विवि द्वारा चलाए जा रहे ‘लघुकथा लेखन कौशल’ के प्रमाण-पत्र और डिप्लोमा पाठ्यक्रम की जानकारी दी।
गोष्ठी में लघुकथाकर सारिका अनूप जोशी ने ‘कन्या-पूजन’, ‘मोतियाबिंद’, ‘नेम-प्लेट’ और ‘उधार का तीर्थ’ लघुकथाओं का वाचन किया। इन पर समीक्षक घनश्याम मैथिल ‘अमृत’ ने कहा कि, शब्द हों या शिल्प, इन्हें निरंतर निखारने, संवारने, बुहारने की आवश्यकता होती है। उन्होंने विस्तार से शीर्षक, शिल्प, भाषा और कथ्य पर अपनी बात रखी।

कार्यक्रम का सरस संचालन वरिष्ठ साहित्यकार अशोक धमेनियां ने किया। सारिका जोशी ने आभार प्रकट किया।