काव्य गोष्ठी…
सोनीपत (हरियाणा)।
आज का साहित्यकार केवल सृजनकर्ता नहीं, बल्कि समाज का सजग मार्गदर्शक है। सामाजिक ताने-बाने के बिखराव पर चिंता, संवेदनशील चिंतन और सहभागिता समय की मांग है।
डॉ. शशि जायसवाल (उप्र) ने अध्यक्षता करते हुए यह बात कही।
अवसर रहा कल्पकथा साहित्य संस्था की २०५वीं काव्य गोष्ठी का, जिसमें मुख्य अतिथि पं. अवधेश प्रसाद मिश्र ‘मधुप’ ने स्पष्ट कहा कि समाज को यदि परिवार रूपी इकाई के रूप में देखा जाए तो प्रत्येक सदस्य को अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करना चाहिए। ऐसे रचनात्मक आयोजन समाज के निर्माण में अमूल्य योगदान देते हैं।
संवाद प्रभारी श्रीमती ज्योति राघव सिंह ने बताया कि स्वैच्छिक विषय पर आयोजित इस गोष्ठी में लद्दाख, उप्र, उत्तराखंड, बिहार व महाराष्ट्र आदि राज्य से रचनाकारों की सहभागिता रही। इसमें देश भक्ति की आह्वान रचनाएँ, प्रकृति से संवाद, वर्तमान सामाजिक विसंगतियों पर गहन आलोचना और आध्यात्मिक चेतना के अनेक शाब्दिक छायाचित्र प्रस्तुत हुए। आभासी गोष्ठी ने न केवल साहित्यिक रसों का अनूठा संगम प्रस्तुत किया, बल्कि समाज के प्रति रचनाकारों के संवेदनशील दृष्टिकोण को भी उजागर किया। प्रमुख आकर्षण इंद्रधनुषीय भावों की अभिव्यक्ति रहा, जिसमें विविध अनुभूतियाँ रचनाओं से प्रकट हुई।
शुभारंभ नागपुर से जुड़े वरिष्ठ साहित्यकार विजय रघुनाथराव डांगे द्वारा संगीतमय गुरु वंदना, गणेश वंदना एवं सरस्वती वंदना से हुआ। सुनील कुमार खुराना, शालिनी बसेड़िया, शोभा प्रसाद, नंदकिशोर बहुखंडी, बिनोद कुमार पाण्डेय, डॉ. मंजू शकुन खरे और दीदी राधा श्री शर्मा आदि ने काव्य पाठ किया। रचनाकारों ने जिस गहराई से विभिन्न विषयों को स्पर्श किया, उससे स्पष्ट हुआ कि साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं, अपितु उसका मार्गदर्शक भी है।
गोष्ठी का संचालन आशुकवि भास्कर सिंह ‘माणिक’ और पवनेश मिश्र द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। आभार के तौर पर समापन कल्पकथा संस्था की संस्थापक दीदी श्रीमती राधाश्री शर्मा द्वारा ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ शांति पाठ के साथ किया गया।