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साहित्य की पुष्टि के लिए च्यवनप्राश है ‘माधवी’ उपन्यास

लोकार्पण….

इंदौर(मप्र)।

जैसे मनुष्य का शरीर होता है, ठीक वैसा ही शरीर साहित्य का होता है। पूरे शरीर का पुष्ट होना साहित्य के लिए भी उतना ही ज़रूरी है,जितना ये शरीर के लिए है। मुझे लगता है कि,साहित्य की पुष्टि के लिए च्यवनप्राश का कार्य करने वाला ये ‘माधवी’ उपन्यास है। इस प्रकार का आदर्श रखना आज के युग में बहुत ज़रूरी है।
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में यह बात मुख्य अतिथि रहे मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कही। अवसर था डॉ. अमिता नीरव की प्रथम औपन्यासिक कृति ‘माधवी: आभूषण से छिटका स्वर्णकण’ का लोकार्पण एवं पुस्तक चर्चा कार्यक्रम का। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए देवी अहिल्या विश्वविधयालय की कुलपति डॉ. रेणु जैन ने की। कार्यक्रम की वक्तागण डॉ. शोभना जोशी ने भी उपन्यास की मनोज्ञ समीक्षा करते हुए कहा कि,मानव का कर्त्तव्य है कि वह अपने सम्मान,जीवन तथा अस्मिता के विरुद्ध होने वाली हर बात का विरोध करें। प्रो. ममता ओझा ने भी उपन्यास की समीक्षा की। अध्ययनशाला की विभागाध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे ने भी उपन्यास की समीक्षा करते हुए कहा कि, लेखन में भाषा बहुत सरल और सहज है तथा इसके संवाद बहुत सहज और रोमांचक है। मैं आगे भी ऐसे ही अच्छे साहित्य की अपेक्षा करती हूँ।
प्रारंभ में कवि एवं वरिष्ठ पत्रकार पंकज दीक्षित ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की। रेनैसां विवि कुलपति डॉ. राजेश दीक्षित नीरव ने आभार व्यक्त किया।

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