भोपाल (मप्र)।
दुबे जी के तीनों उपन्यास के कथानक भिन्न परंतु रोचक है। ‘एक राही अलबेला’ उपन्यास जासूसी के साथ-साथ साहित्यिक उपन्यास है। मिशन और प्रोफेशन की पवित्रता हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर है। ये उपन्यास हीनता के बोध से मुक्त करते हैं।
साहित्य सृजन में राष्ट्रबोध सर्वोपरि हो।
यह विचार मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने अपने उद्बोधन में भोपाल में व्यक्त किए। अवसर बना केशव चरण दुबे के उपन्यास ‘परत दर परत दर’, ‘प्रेमातीत’ और ‘एक राही अलबेला’ के लोकार्पण का, जो दुष्यन्त कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय के राज सभागार में हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता अकादमी, मध्यप्रदेश के निदेशक डॉ. दवे ने की। मुख्य अतिथि राज्य निर्वाचन आयोग के आयुक्त मनोज श्रीवास्तव रहे। विशिष्ट अतिथि आंचलिक विज्ञान केन्द्र के क्यूरेटर साकेत कौरव और संग्रहालय के अध्यक्ष रामराव वामनकर रहे। श्री वामनकर ने कहा कि दुबे जी के उपन्यास इतने मनोरंजक होते हैं कि वे एक बैठक में पढ़े जा सकते हैं। ये साहित्य से इतर सामान्य पाठकों के लिए है। पुस्तकों पर समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए साधना शुक्ला ने कहा कि ‘परत दर परत’ विज्ञान कथा है। ‘प्रेमातीत’ में प्रेम कथा है, जबकि ‘एक राही अलबेला’ एक पत्रकार की कथा है, जो राजनीतिक षड्यंत्रों को उजागर करता है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में साकेत कौरव ने कहा कि किताबों से ज्यादा जीवन को समझना जरूरी है, जो इस किताब में है।
मुख्य अतिथि ने कहा कि जिसे भारत में लुगदी साहित्य कहा जाता है या साहित्यिक दृष्टि से जिसके प्रति तुच्छ भाव रखा जाता है विदेशों में उसके कोर्स संचालित होते हैं।
कार्यक्रम का संचालन प्रबंधन बाघमारे ने किया।