हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
**************************************
रचना शिल्प:काफिया-आत(बात,सौगात,खैरात इत्यादि),रदीफ-हुई होगी २ २ १ १ २ २ २ २ २ १ १ २ २ २
जब दूर गगन,धरती,आपस में मिले होंगे,
तब कितनी सुहानी-सी,कुछ बात हुई होगी।
नजदीक से दिखते तो,कुछ बात खुली होती,
धरती पे तभी सुख की सौगात हुई होगी।
सब मेल दिलों के भी तबसे ही हुए होंगे,
मेलों की तभी शायद खैरात हुई होगी।
लेता है गगन पानी,धरती के समंदर से,
लौटाने की खातिर ही,बरसात हुई होगी।
सूखी है जमीं कब से,चुपचाप गगन बैठा,
रूठे हैं न जाने क्यों,क्या बात हुई होगी।
दस्तूर निभाते न,हम लोग जमीं वाले,
हमसे ही कहीं कोई गफ्लात हुई होगी।
भगवान अरज सुन लो,हर जुल्म की माफी दो,
इस हाल यहाँ दिन में…,भी रात हुई होगी॥
परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।