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माँ का क़र्ज चुकाना है

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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ये जग जननी हमारी है,
हमें सारे जहां से प्यारी है,
ये सारे जहां को दिखाना है,
हमें माँ का कर्ज़ चुकाना है।

माँ की ख़ातिर मर जाएंगे,
न समझो हम डर जाएंगे,
जां देकर फ़र्ज़ निभाना है,
हमें माँ का कर्ज़ चुकाना है।

आज़ादी के हैं दीवाने हम,
जल जाएंगे हैं परवाने हम
तन-मन-धन सब लुटाना है,
हमें माँ का कर्ज़ चुकाना है।

कमज़ोर समझ न लेना हमें,
आता है ज़वाब भी देना हमें
हर दुश्मन से टकराना है,
हमें माँ का कर्ज़ चुकाना है।

जो हाथ बढ़ा उसे तोड़ दिया,
तूफ़ानों का रुख़ मोड़ दिया
शायद हमें नहीं पहचाना है,
हमें माँ का कर्ज़ चुकाना है।

जो हैं कुछ और,दिखाते हैं,
बन दीमक देश को खाते हैं
हमें उनसे देश बचाना है,
हमें माँ का क़र्ज चुकाना है।

हमें काम कुछ ऐसा करना है,
ये जज़्बा दिल में भरना है।
फिर राम-राज्य को लाना है,
हमें माँ का क़र्ज चुकाना है॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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