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स्वच्छ भारत की नींव धरें हम

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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स्वच्छ जमीन-स्वच्छ आसमान…

हरित धरा नव पुलकित सुंदर,
खुशहाली लाए मन भर कर।

दुल्हन-सी धरती का भेष,
देख रहा हूँ मैं अनिमेष।

किन्तु मुझको डर लगता है,
वृक्ष कोई जब भी कटता है।

जंगल है मही का आभूषण,
हाय! लुट न जाए ये धन।

मैं नित चिंता में रहता हूँ,
दुख अपना तुमसे कहता हूँ।

अगर बचाया नहीं धरा को,
टाल सकोगे नहीं बला को।

संकट के बादल छाएंगे,
यदि प्रदूषण फैलाएंगे।

स्वच्छ रहे ये धरती-अम्बर,
करूं निवेदन हाथ जोड़कर।

रहे स्वच्छ अपना परिवेश,
उन्नति करेगा अपना देश।

आओ मिल संकल्प करें हम,
स्वच्छ भारत की नींव धरें हम॥