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हमें जानवर ही रहने दीजिए…

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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कलकत्ता दुष्कर्म-हत्या…

दरिंदों की तुलना हमसे मत कीजिए,
हम जानवरों को जानवर ही रहने दीजिए।

मानव से तो हम हमेशा ही बेहतर हैं,
ऐसी घिनौनी हरकत हम करते नहीं हैं।

हममें बुद्धि नहीं, पर हम गलत करते नहीं हैं,
ये काम है दरिंदों का, हमें उस श्रेणी में मत लाईए।

आज हम जानवर श्रेठ हैं, उन मानवों से,
हम किसी का हक कभी मारते नहीं हैं।

नहीं चोरी, डकैती, हत्या या बलात्कार करते हैं
नहीं कुर्सी के लिए लोगों से झूठा वादा करते हैं।

हम जाति-धरम के लिए कभी लड़ते नहीं हैं,
आप जाति-धरम में पड़ प्रेम से रहते नहीं हैं।

हम कभी किसी को धोखा देते नहीं हैं,
चुगली-शिकवा-शिकायत कभी करते नहीं हैं।

झूठी शान की खातिर किसी का गला काटते नहीं हैं,
बेईमानी, फरेब-जालसाजी करते नहीं हैं।

हम गोली चला नहीं सकते, पर गोली खाते हैं,
इसलिए हम मानव नहीं जानवर कहलाते हैं।

है हिम्मत तो ऐसे दरिंदों को संग-संग फांसी दीजिए,
बरसों-बरसों केस लटकाकर मत रखिए॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।