पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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महाशिवरात्रि विशेष…
हिंदू धर्म में भगवान् शिव को देवों का देव ‘महादेव’ कहा जाता है। भगवान् शिव को मानने वालों ने ‘शैव संप्रदाय’ चलाया, इसलिए शैव संप्रदाय के अधिष्ठाता एवं प्रमुख देवता शिव जी ही माने जाते हैं और भक्त शिव जी की ही पूजा करते हैं। लोगों में यह मान्यता है, कि भगवान् शिव भोले-भंडारी हैं यह औघड़दानी बहुत जल्दी प्रसन्न होकर कृपा करते हैं।
शास्त्रों और पुराणों में भगवान् शिव जी के अनेक नाम हैं, जिनमें १०८ नाम तो काफी प्रचलित हैं। शिव जी को भोलेनाथ, शंकर जी, पशुपतिनाथ व त्रिनेत्रधारी आदि नामों से पुकारा जाता है ।
भगवान् शिव को सावन का महीना बहुत प्रिय है। यही कारण है कि इस महीने में महादेव की पूजा, आराधना और जलाभिषेक किया जाता है। शिव जी को प्रसन्न करने के लिए व्रत, उपवास, पूजन व अभिषेक का विशेष महत्व है।
पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी सती ने पिता दक्ष प्रजापति के घर में योगशक्ति द्वारा अपनी देह को त्याग दिया था, तो अगले जन्म में राजा हिमालय एवं मैना के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया।उन्होंने अन्न-जल को त्याग कर वर्षों तक घोर तपस्या की। तब भगवान् प्रसन्न हुए और दोनों का विवाह हुआ।
ऐसा कहा जाता है, कि रावण जो भगवान् शिव का परम भक्त था; वह काँवर में जल भरकर ले आया, जिसके अभिषेक से भगवान् प्रसन्न हुए हुए। तभी से श्रद्धालु मीलों तक पैदल जाकर गंगाजल लाकर भगवान् शिव का अभिषेक करते हैं।
यह भी मान्यता है कि भगवान् शिव सावन के महीने में धरती पर अवतरित होकर अपने ससुराल गए थे और वहाँ उनका स्वागत अर्घ्य देकर जलाभिषेक द्वारा किया गया था। इसी लिए भक्तगण इस महीने इनकी भक्ति में लीन रहते हैं, जिससे शिव कृपा प्राप्त हो सके। सभी दुःख, चिंता और कठिनाइयों से मुक्ति मिल सके।
शिव पुराण के अनुसार भगवान् शिव सभी जीव-जंतुओं के स्वामी एवं अधिनायक हैं। संसार के सभी जीव-जंतु यहाँ तक कि कीट-पतंगे भी शिव जी की इच्छा से ही कार्य करते हैं। शिवपुराण के अनुसार भगवान् शिव वर्ष में ६ मास के लिए कैलाश पर्वत पर समाधिस्थ हो जाते हैं, उनके साथ ही सारे कीट-पतंगे भी बिल में घुस कर बंद हो जाते हैं। ६ मास के बाद धरती पर आकर श्मशान घाट पर निवास किया करते हैं। धरती पर इनका अवतरण प्रायः फाल्गुन मास की त्रयोदशी तिथि को हुआ करता है। अवतरण के इस महान् दिन को ‘महाशिवरात्रि’ के नाम से जाना जाता है ।
यह भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने तांडव नृत्य करके अपना तीसरा नेत्र खोला था और ब्रह्मांड को इसकी ज्वाला से समाप्त भी किया था। इसके कई स्थानों पर इस दिन को भगवान् शिव और पार्वती का शुभ विवाह सम्पन्न हुआ था।
महाशिवरात्रि को रात्रि जागरण का भी विधान है। कई लोग इस दिन शरीर और मन को पवित्र करने के लिए उपवास भी रखते हैं।
‘महाशिवरात्रि’ के सम्बन्ध में पौराणिक कथा अनुसार-चित्रभानु नाम का शिकारी जंगल में जानवरों को मारकर अपना जीवनयापन करता था। एक बार महाशिवरात्रि के दिन उसको शिव कथा सुनने को मिली। सुनने के बाद वह जंगल में गया और शिकार का इंतजार करते-करते बेल-पत्र तोड़-तोड़ कर घास-पत्तियों से ढके हुए शिवलिंग पर फेंकता रहा। उसके इस कृत्य से प्रसन्न होकर भगवान् भोलेनाथ ने उसके हृदय को निर्मल बना दिया। उसके मन से हिंसा का विचार नष्ट हो गया और एक के बाद एक ४ हिरणों को जीवनदान दे दिया। यह कथा प्राणीमात्र के प्रति दया और करुणा का संदेश देती है। यानी भगवान् शिव की पूजा साधारण तरीके से भी करने से भगवान् प्रसन्न होकर सारे सांसारिक मनोरथों को पूरा कर देते हैं।
हम सबको इस पर्व पर शिव जी से अपने हृदय को निर्मल और पवित्र कर देने की प्रार्थना करना चाहिए।