राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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रघुकुल की वधू हाँ! उर्मिले,
सखी तेरा मौन अखरता है
देख तेरी कृशकाय-देह,
धीरज का धीर पिघलता है।
दृग से छलके अश्रु जो जरा,
पलकों से सींच, न हो अनर्थ
सिसकी भी राज महल सुन ले,
पति धर्म तेरा हो जाए व्यर्थ।
वनवास गए हैं तेरे स्वामी,
क्यों नयन में नेह उमगता है |
देख तेरी कृशकाय-देह,
धीरज का धीर पिघलता है।
रामायण की चर्चित पात्र नहीं,
न लिखी गई तेरी प्रणय-व्यथा
प्रासाद के पाषाणों पर,
अंकित वामा तेरी अश्रु-कथा।
वल्लभ का ध्येय न बाधित हो,
संकल्प ले, समय गुजरता है।
देख तेरी कृशकाय-देह,
धीरज का धीर पिघलता है।
अंतस में दावानल-सा लिए,
निर्निमेष द्वार तकती रहती |
बन गई तपस्विनी स्वामी सम,
दिन-रैन सतत जगती रहती।
प्रियतम का सिमरन पल-पल है,
उर दीप-सा जलता-बुझता है।
देख तेरी कृशकाय-देह,
धीरज का धीर पिघलता है।
हे! प्रियंवदे, हे! त्यागमूर्ति,
जग पीड़ा न पहचान सका
आह! तेरे उच्छवासों को,
अवनि-अम्बर न जान सका।
“न दैन्यं, न पालयनम्”
यही आलोड़ित होता रहता है।
देख तेरी कृशकाय-देह,
धीरज का धीर पिघलता है॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।