हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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लोग लगे हैं छीनने, आजकल एक-दूसरे का निवाला,
फिर कर रहे हैं उम्मीद कि, हो जाए अंधेरे में उजाला।
इंसाफियों के नाम पर, कर रहे हैं हम ही बेइंसाफियाँ,
फिर मांग रहे हैं खुदा के द्वार पर, जाकर के माफियाँ।
देखा-देखी में सीखा है ये, चादर से बाहर पाँव पसारना,
बाल की खाल उधड़ जाए, पर मंजूर नहीं है जी हारना।
छोटी-सी इस जिन्दगी में तो, उलझनें ही बेशुमार है,
मुसीबत में आता न काम कोई, यूँ तो दोस्त हजार है।
काबिलियत की है कदर कहां, सब पहुंच का कमाल है,
असलियत की है कदर कहां, मिलावट की तो धमाल है॥