डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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माँ मेरी तुम कितनी सुंदर,
है मन में ममता का समंदर।
श्याम वर्ण दुबली है काया,
कृष्ण का जैसे रूप समाया।
आँखों के नीचे स्याह घेरे,
जीवन में दुःख-दर्द के फेरे।
बालों की असमय सफेदी,
इच्छाएँ बन गईं हो कैदी।
पड़ी माथे पर गहरी रेखाएं,
हम सबकी ले ली चिंताएं।
दुबली-पतली लटें उलझतीं,
काश उलझनें भी सुलझतीं।
हाथ-पैर की फ़टी बिवाई
काम से कब फुर्सत है पाई।
आँखों पर गहरा-सा चश्मा,
पहर आखिरी क्या करिश्मा।
कपड़ों की उधड़ी सिलाई,
काटी उम्र बचा पाई-पाई।
पहने पुरानी सूती साड़ी,
रखी संजोकर कमाई गाढ़ी।
माँ तुम अपने-आपमें मन्दिर,
माँ मेरी तुम कितनी सुंदर॥
परिचय– डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।