सेवा में,
ज़ी बिज़नेस।
विषय:- हिन्दी चैनल पर अंग्रेज़ी व रोमन लिपि के बढ़ते प्रयोग से हिन्दी को हो रही क्षति पर पुनर्विचार हेतु निवेदन।
मान्यवर,
सादर नमस्कार।
मैं अभिषेक कुमार आपके चैनल का एक नियमित दर्शक और हिन्दी भाषा प्रेमी हूँ और आपके चैनल के माध्यम से शेयर बाजार को सीखने का प्रयास कर रहा हूँ। मैं एक छोटे से गाँव का निवासी हूँ जिसकी जनसंख्या केवल २३१९ है, अत्यंत सम्मानपूर्वक यह पत्र प्रेषित कर रहा हूँ। मेरा उद्देश्य आलोचना नहीं, अपितु एक रचनात्मक संवाद का प्रस्ताव है, ताकि हिन्दी चैनलों पर हिन्दी भाषा का अस्तित्व बच सके।
◾हिन्दी चैनल की परिभाषा- केवल नाम नहीं, आत्मा भी हो
ज़ी बिज़नेस देश का एक प्रमुख व्यावसायिक समाचार चैनल है, जिसकी प्रस्तुति, विश्लेषण और गति सराहनीय है, परन्तु भाषा के स्तर पर यह चैनल धीरे-धीरे उस प्रवृत्ति का प्रतिनिधि बनता जा रहा है, जहाँ ‘हिन्दी चैनल’ का अर्थ केवल नाममात्र की हिन्दी और शेष सब कुछ अंग्रेज़ी या रोमन लिपि में हो गया है। अर्थात् एक प्रदूषित व अधकचरी हिंग्लिश का चैनल बन गया है। क्या यह उचित है कि हिन्दी चैनल की पहचान ही धुंधली हो जाए?
◾तकनीकी शब्दावली बनाम भाषिक आत्मनिर्भरता
यह स्वीकार्य है कि शेयर बाज़ार की कुछ पारिभाषिक शब्दावली अंग्रेज़ी से आयातित है, जैसे इक्विटी, इंडेक्स, डिवीडेंड आदि, परन्तु जब सम्पूर्ण वाक्य, शीर्षक, समाचार-पट्टी और संवाद अंग्रेज़ी शब्दों से भर जाएँ, तो यह केवल शब्दों की उधारी नहीं, बल्कि भाषिक आत्मविस्मृति का संकेत बन जाता है।
हिन्दी में, लक्ष्य, सूचकांक, संवेदी सूचकांक, निदेशक मंडल, वार्षिक अधिवेशन, लाभ-हानि, लाभांश, निवेश, पूँजीकरण, प्रतिभूति, समेकित लाभ-हानि, मुद्रा, स्वर्ण, पदक, विश्वकप, विनिमय, विलय, समापन, विश्लेषण, प्रभाव, निर्यात- आयात, मासिक, पंजीयन, सीमा शुल्क, आयात शुल्क, भारत, भारतीय, समिति, उत्पादन, प्रकाशन, पूँजीगत लाभ, वित्त, ऋण, गृह ऋण, आवेदन, लेखा परीक्षण, आयकर, वस्तु एवं सेवाकर, आयकर विभाग, विदेश व्यापार निदेशालय, अर्थव्यवस्था जैसे हजारों शब्द प्रचलित हैं और दर्शक इन्हें समझने में सक्षम हैं, क्योंकि अधिकांश भारतीय भाषाओं में इन्हीं संस्कृत शब्दों का प्रयोग आज भी होता है। अतः अंग्रेज़ी पर अत्यधिक निर्भरता न केवल अनावश्यक है, बल्कि हिन्दी की संभावनाओं को सीमित करने वाली भी है
◾देवनागरी लिपि का लोप- पहचान का संकट
हिन्दी की आत्मा उसकी देवनागरी लिपि में निहित है। जब शीर्षक, ग्राफ़िक्स और समाचार-पट्टियाँ रोमन लिपि में प्रस्तुत की जाती हैं, तो हिन्दी की दृश्य उपस्थिति ही समाप्त हो जाती है। यह स्थिति उस माला के समान है, जिससे मणियाँ निकाल ली गई हों-केवल डोरी शेष रह जाती है। क्या हिन्दी चैनल को हिन्दी लिपि से वंचित करना उचित है?
◾लोकप्रियता बनाम भाषिक उत्तरदायित्व
यह तर्क दिया जा सकता है कि दर्शक अंग्रेज़ी शब्दों के अभ्यस्त हैं, परन्तु एक जनप्रिय चैनल का उत्तरदायित्व केवल दर्शक संख्या तक सीमित नहीं होता-वह भाषाई अस्मिता और सांस्कृतिक दिशा भी निर्धारित करता है।
ज़ी बिज़नेस जैसे प्रभावशाली मंच से यदि हिन्दी को आत्मविश्वास के साथ प्रस्तुत किया जाए, तो यह न केवल भाषा का सम्मान बढ़ाएगा, बल्कि दर्शकों में भी हिन्दी के प्रति रुझान बढ़ेगा।
◾सुझाव – व्यावहारिक और सकारात्मक पहल
आपसे निम्नलिखित सुझावों पर विचार करने का विनम्र अनुरोध है:
समाचार-पट्टी, शीर्षकों और ग्राफ़िक्स में पूर्णतः देवनागरी लिपि का प्रयोग किया जाए। जहाँ आवश्यक लगे, अंग्रेजी शब्दों को कोष्ठक में दिया जाए। तकनीकी शब्दों के साथ उनके हिन्दी समकक्ष भी प्रदर्शित किए जाएँ, जिससे दर्शकों की समझ और शब्द-भंडार दोनों बढ़ें।
संवाददाताओं व एंकरों को हिन्दी व्याकरण व वाक्य रचना के प्रशिक्षण हेतु कार्यशालाएँ आयोजित की जाएँ।
आपसे अपेक्षा है कि इस निवेदन को एक सजग नागरिक की भाषा-निष्ठा के रूप में स्वीकार करेंगे और इस दिशा में सकारात्मक पहल करेंगे।
सादर,
अभिषेक कुमार,
रायसेन (मप्र)
