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हृदय तक पहुंच सकते हैं समय एवं परिवेश पर लघुकथा लिखकर

भोपाल (मप्र)।

समकालीन लघुकथा में तकनीक के बढ़ते दखल को रेखांकित करना आज की बड़ी जरूरत है। वर्तमान लघुकथाकार अपने समय एवं परिवेश पर आधारित लघुकथा लिखकर पाठकों के हृदय तक पहुंच सकते हैं। आज प्रस्तुत डॉ. शील कौशिक की सभी लघुकथाएं प्रभावी और महत्वपूर्ण हैं।
यह उदगार साहित्यकार सुनीता आंभोरे मुंबई (महाराष्ट्र) ने लघुकथा शोध केंद्र समिति (भोपाल) द्वारा आयोजित आभासी आयोजन में वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. शील कौशिक (हरियाणा) की लघुकथाओं पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। आरम्भ में केंद्र के सचिव घनश्याम मैथिल ‘अमृत’ ने आधार वक्तव्य देते हुए स्वागत उद्बोधन दिया। तत्पश्चात शेफालिका श्रीवास्तव के संचालन में लघुकथा गोष्ठी आरम्भ हुई।

डॉ. कौशिक ने ‘छुटकारा’, ‘क्यू आर कोड’ और ‘छूटा हुआ सामान’ आदि लघुकथाओं का वाचन किया। इन पर डॉ. मिथलेश अवस्थी, डॉ. आदर्श प्रकाश व श्रीमती अनीता रश्मि ने भी शीर्षक, कथ्य और शिल्प पर महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ प्रस्तुत की। आयोजन में अनेक लघुकथा लेखक एवं पाठक उपस्थित रहे। डॉ. कौशिक ने आभार प्रकट किया।