सुबोध कुमार शर्मा
शेरकोट(उत्तराखण्ड)
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‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ स्पर्धा विशेष…………………
नारी से हारी नारी है,
यह कैसी लाचारी है।
दहेज परहेज की बात सदा,
करती केवल नारी है।
अत्याचारों की ज्वाला से,
नित जलती बस नारी है।
प्रसव पीड़ा परिहास बनी,
नारी ने जन्मी नारी है।
तात गृह से विदा हुई जब,
नारी बनी बिचारी है।
हरि हरो है जग की पीड़ा
चहुँ दिशि बदरी काली है।
मन का लोभ दूर करो तो,
हर सुबह उजियारी है।
महा माया भी तो तू ही है,
इंद्राणी दुर्गा तू ही है।
निरख जगत में तू ही स्वयं,
नारी क्यों अत्याचारी है।
माया मेटो तुम ही अब तो,
उर में जो इच्छा कारी है।
दुल्हन ही दुल्हन है,नहीं,
अब सास बनने की तैयारी है।
मर्म समझो तुम ज्वाला का,
जलती जिसमें नारी है।
‘सुबोध’ अपनाकर देखो,
जलना ही क्या लाचारी है।
धर्म ज्ञान विज्ञान क्षेत्र में,
अग्रणी रही सदा नारी है।
किरण कल्पना आदि ने जग में,
नारी की छवि सुधारी है।
नारी से नारी हारी है,
यह कैसी लाचारी है।
अभिप्रेरक जो सदा बनी,
मधुर हुई कुछ खारी है।
दो-दो मात्राएं लेकर,
नर से भरी नारी है।
ससुर सदा ही मौन रहा,
सास बनी संहारी है।
नारी जगत का प्रण बनी,
जीवन कष्टों का त्राण बनी।
कितने पतित उबारे तूने,
जिंदगी उनकी सँवारी है।
नित पूजित बंदित सम्मानित,
शोषित त्रिस्कृत अपमानित।
कैसा विरोधाभास है यह,
क्यों नही बनी चिंगारी है॥
परिचय – सुबोध कुमार शर्मा का साहित्यिक उपनाम-सुबोध है। शेरकोट बिजनौर में १ जनवरी १९५४ में जन्मे हैं। वर्तमान और स्थाई निवास शेरकोटी गदरपुर ऊधमसिंह नगर उत्तराखण्ड है। आपकी शिक्षा एम.ए.(हिंदी-अँग्रेजी)है। महाविद्यालय में बतौर अँग्रेजी प्रवक्ता आपका कार्यक्षेत्र है। आप साहित्यिक गतिविधि के अन्तर्गत कुछ साहित्यिक संस्थाओं के संरक्षक हैं,साथ ही काव्य गोष्ठी व कवि सम्मेलन कराते हैं। इनकी लेखन विधा गीत एवं ग़ज़ल है। आपको काव्य प्रतिभा सम्मान व अन्य मिले हैं। श्री शर्मा के लेखन का उद्देश्य-साहित्यिक अभिरुचि है। आपके लिए प्रेरणा पुंज पूज्य पिताश्री हैं।