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अत्याचार

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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शादी कर के लाये हो तुम
क्यों करते हो अत्याचार,
मात-पिता को छोड़ा मैंने
छोड़ दिया सारा घर-बार।

मैंने तो सोचा था जब मैं
साजन के घर जाऊंगी,
प्यार मिलेगा मुझको सबका
दुनिया नयी बसाऊंगी।

पर आकर ससुराल में मुझको
ये कैसा उपहार मिला!
प्यार के बदले साजन से भी,
मुझको अत्याचार मिला।

सुंदर पत्नी रुपया-पैसा
और मिले कितने उपहार,
सब-कुछ तो मिल गया तुम्हें
फिर क्यों करते हो अत्याचार।

मैं पत्नी हूँ,नहीं हूँ दासी
जो इतना सह जाऊंगी,
दहेजलोभी हो तुम ‌सारे
सबको सबक सिखाऊंगी।

ए.सी.चाहिए,कार चाहिए
स्वयं कमा कर लाओ तुम,
दिनभर धमाचौकड़ी करते
खुद लाकर दिखलाओ तुम।

पढ़े-लिखे डिग्री लेकर भी
अब तक क्यों बेकार फिरो,
नहीं नौकरी करना है
छोटा-मोटा व्यापार करो।

कमजोर समझने की मुझको
तुम कोई भूल नहीं करना,
करते अत्याचार‌ कहीं ना
तुमको दंड पड़े भरना॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।