विनोद सोनगीर ‘कवि विनोद’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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दिल में लगी आग को बुझाऊं कैसे,
मुझे तुमसे मुहब्बत है,कहो तुम्हें बताऊं कैसे।
फिक्र करता हूँ तुम्हारी हद से ज्यादा,
कहो तुम्हें ये जताऊं कैसे।
तुम बिन कोई मेरे मन को भाता नहीं,
कहो अपने दिल को समझाऊं कैसे।
हर रंग मुझे सतरंगी लगता,
जो रंग तुझमें रंग जाएं,कहो वो रंग लाऊं कैसे।
बड़ी मनमोहक मुस्कान तुम्हारी,
जो तुम्हारे मुखड़े पर छा जाए…
कहो वो मुस्कान लाऊं कैसे।
सादगी भरी संजीदगी तुम्हारी,
जो सादगी तुमको भा जाए…
कहो वो सादगी लाऊं कैसे।
धूप में भी छांव-सी शीतलता है तुझमें,
जो शीतल तुमको कर जाए…
कहो वो शीतलता लाऊं कैसे।
अपना सब-कुछ मान लिया है तुमको,
जो तुमको भी यक़ीन हो जाए…
कहो वो यक़ीन दिलाऊं कैसे।
तुम मेरी और मैं तुम्हारा हो जाऊं,
कहो तुमको अपना बनाऊं कैसे…ll
परिचय-विनोद कुमार सोनगीर का निवास मध्यप्रदेश के इन्दौर जिले में है,पर स्थाई निवास मंडलेश्वर में है। साहित्यिक उपनाम-कवि विनोद से पहचाने जाने वाले श्री सोनगीर की जन्म तारीख १ जुलाई १९८२ है। इनको भाषा ज्ञान-हिंदी व इंग्लिश का है। बी.एससी.(जीव विज्ञान),एम.ए.(समाज शास्त्र),एम.एससी.(रसायन) सहित डी.एड. और सी.टी.ई.टी. तक शिक्षित होकर कार्य क्षेत्र में शासकीय सेवक (शिक्षक)हैं। आप सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत पर्यावरण सुरक्षा,बालिका शिक्षा हेतु सदैव तत्पर हैं। कवि विनोद की लेखन विधि-गीत,ग़ज़ल, लेख और कविता है। कईं पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाओं को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान तथा पुरस्कार निमित्त आपको शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने हेतु व संगठन हित में सक्रिय भूमिका हेतु कर्मचारी संगठन से सम्मान,शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवा हेतु ग्राम पंचायत उमरीखेड़ा द्वारा सम्मान आदि हासिल हुए हैं। विशेष उपलब्धि-उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन के माध्यम से सभी का शुद्ध मनोरंजन करना,व समाज को नई दिशा प्रदान करना है। आपकी नजर में पसंदीदा हिंदी लेखक सभी हैं,तो प्रेरणापुंज-डॉ.राहत इंदौरी हैं। इनकी विशेषज्ञता-श्रृंगार,हास्य, व्यंग्य और वीर रस पर लेखन की है। देश और हिंदी भाषा के प्रति अपने विचार-“देश में हिंदी साहित्य के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार अत्यंत आवश्यक है। हिंदी भाषा को इंग्लिश से बचाने के लिए साहित्य का प्रसार अत्यंत आवश्यक है।” कवि विनोद के जीवन का लक्ष्य-श्रेष्ठ कार्य सतत करते रहना है।