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हूँ शून्य हो गया मैं शून्य के ही शोध में!!

गोलू सिंह
रोहतास(बिहार)
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हूँ हो गया अबोध मैं,भूल आमोद-प्रमोद में,
प्रेम से पलता जैसे माता-पिता की गोद में
ना रहा आभास कुछ!
ना रहा एहसास कुछ!
हूँ शून्य हो गया मैं शून्य के ही शोध में!!

थी पकड़ रही कलम निरन्तर मेरी उंगलियाँ,
लफ़्ज़ों को सुनकर गूँजती थी तालियाँ
हूँ हो रहा गुमनाम मैं!
हूँ हो रहा अनजान मैं!
शब्दों से अलगाव अब शायद निजता के क्रोध में,
हूँ शून्य हो गया मैं शून्य के ही शोध में!!

ना रही स्वच्छंद अब गति मेरे ह्रदय की,
ना रही मिठास अब शब्दों में लय की
हूँ हो रहा मंद मैं!
हूँ हो रहा उद्दंड मैं!
शब्दों से अलगाव अब शायद आधुनिकता के बोध में,
हूँ शून्य हो गया मैं शून्य के ही शोध में!!

चित्र कर विचित्र खूब माया ने भरमा दिया,
काया रूपी काल ने कुकृत्य खूब करा दिया
नेत्र में ना शुद्धता!
चरित्र में ना पारदर्शिता!
अंग-अंग अशुद्ध अब शब्दों से धृष्टता।
ना रहा उल्लास में,
ना रहा प्रकाश में,
असभ्य हो गया हूँ सद्गुरु के अबोध में,
हूँ शून्य हो गया मैं शून्य के ही शोध में!!

परिचय-गोलू सिंह का जन्म १६ जनवरी १९९९ को मेदनीपुर में हुआ है। इनका उपनाम-गोलू एनजीथ्री है।lनिवास मेदनीपुर,जिला-रोहतास(बिहार) में है। यह हिंदी भाषा जानते हैं। बिहार निवासी श्री सिंह वर्तमान में कला विषय से स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। इनकी लेखन विधा-कविता ही है। लेखनी का मकसद समाज-देश में परिवर्तन लाना है। इनके पसंदीदा कवि-रामधारी सिंह `दिनकर` और प्रेरणा पुंज स्वामी विवेकानंद जी हैं।