सोमा सिंह ‘विशेष’
गाजियाबाद(उत्तरप्रदेश)
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सब मिट्टी हो जाता है,
और मिट्टी में मिल जाता है।
मिट्टी में सोता यह बीज अहो,
मिट्टी में ही उग आता है।
सब मिट्टी हो जाता है…
मिट्टी से बसती है बस्ती,
मिट्टी से बनती है हस्ती
मिट्टी के कण-कण से ही प्राणी,
प्राण-कुसुम मुस्काता है।
सब मिट्टी हो जाता है…
मिट्टी के लाल हो तुम प्यारे,
क्यूँ दिखते इतने बेचारे
मिट्टी की खातिर कुछ दर्द सहो,
मिट्टी को अपना फर्ज कहोl
मिट्टी का बेटा हँसते-हँसते,
मिट्टी में ही सो जाता हैl
सब मिट्टी हो जाता है…ll
परिचय-सोमा सिंह का बसेरा उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में है। साहित्यिक उपनाम ‘विशेष’ है। ५ नवम्बर १९७३ को मेरठ में जन्मी सोमा सिंह को हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। रसायन विज्ञान में परास्नातक सोमा सिंह का कार्यक्षेत्र-शिक्षण(शिक्षक) का है। सामाजिक गतिविधि में आप पर्यावरणकर्मी हैं। इनकी लेखन विधा काव्य है। ‘मेरा पंछी'(कविता संग्रह)एवं आखर कुंज (साझा संग्रह)सहित विद्यालय की पत्रिका में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। आपको सम्मान- पुरस्कार में स्वरचित कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मिला है। ब्लॉग पर भी सक्रिय सोमा सिंह की विशेष उपलब्धि शिक्षण तकनीक,विज्ञान व पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र में पुरस्कृत होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज,साहित्य व विज्ञान की सेवा करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना तथा प्रेरणापुंज-डॉ. अब्दुल कलाम साहब हैं। देश,साहित्य व विज्ञान की सेवा को जीवन लक्ष्य मानने वाली सोमा सिंह की विशेषज्ञता-प्रेरणादायी कविताएं हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“मैं अपने देश व हिंदी भाषा के समक्ष नतमस्तक हूँ।”