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मानवता मुस्करा दी

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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माधव और नासीर दोनों एक-दूसरे के कंधे पर सिर टिकाए निढाल हैं। एक-दूसरे की आँखों से सारे आँसू पौंछ कर…। किसी एक पार्टी के लोगों ने माधव के जवान बेटे को मार दिया और किसी दूसरी पार्टी के लोगों ने नासीर के अब्बा को। और दूसरे जो लोग मरे,उनसे भी तो रिश्तेदारी नहीं तो मानवता का नाता तो था। जो मरे,वो माधव और अब्दुल के जीवन के सहारे थे। इन राजनीतिक नेताओं ने अपनी राजनीतिक भूख के लिए कितनों का निवाला छीन कर भूखा मार दिया होगा। पर चलो,अब क्या कर सकते हैं। जो होना था हो गया। कहीं कोई नहीं दिखता,कर्फ्यू लगा हुआ है। किसी ट्रेन के नीचे आकर जान भी नहीं दे सकते। जो बच गए हैं,उन्हें तो पालना होगा,पर इस पेट की आग का क्या करें ?
नासीर एक खंडहर हो गई मसजिद से कुछ सूखी रोटी ले आयाl माधव एक जल चुके मंदिर से चूहों से बचा हुआ प्रसाद ले आया। दोनों एक-दूसरे को अपने हाथ से निवाला खिलाने लगे। शायद ईश्वर और अल्लाह दोनों ही आँखें मूंद कर बैठै थे,किन्तु मानवता जरूर मुस्करा रही थी।

परिचय-संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी  विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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