ओमप्रकाश मेरोठा
बारां(राजस्थान)
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नसों में गर्म खून हर जवान,इन्क़लाब है,
जो खींच ले जमीं को आसमान,इन्क़लाब है।
दमन की ठोंकरों से उठ के आधियाँ जो बन गयी,
वो दर्द और सितम की दास्तान इन्कलाब है।
जमीन बंजारों की है तो हौंसले का हल चला,
उगा दे इक नयी फसल किसान इन्क़लाब है।
ये आग जुल्म की है पर हमें जला न पाएगी,
के जिस्म पे पड़ा हर इक निशान इन्क़लाब है।
महल तेरे ही हाथ से खड़े हुए हैं भूल मत,
तू याद रख तेरा भी ये मकान इन्कलाब है।
खामोश हैं जो लब तो तू तूफान सामने समझ,
हक़ों की चाह में तो ये जबान इन्कलाब है।
सियासी सरहदों की सारी बंदिशों को तोड़ के,
निकल पड़े जो घर से तो अवाम इन्क़लाब है॥
परिचय-ओमप्रकाश मेरोठा का निवास राजस्थान के जिला बारां स्थित छबड़ा(ग्राम उचावद)में है। ७ जुलाई २००० को संसार में आए श्री मेरोठा ने आईटीआई फिटर और विज्ञान में स्नातक किया है,जबकि बी.एड. जारी है। आपकी रचनाएं दिल्ली के समाचार पत्रों में आई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में भारत स्काउट-गाइड में राज्य पुरस्कार (२०१५)एवं पद्दा पुरस्कार(२०२०)आपको मिला है।