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कोरोनाःभारत की विश्व छवि बेहतर ही हुई

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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कई लोगों ने पूछा है कि ‘कोरोना’ संकट का भारत की विदेश नीति पर क्या असर पड़ा है,बताइए। असलियत तो यह है कि कोरोना का युद्ध इतना गंभीर है कि यह पूरा पिछला एक महीना हम सब लोग अंदरुनी सवालों से ही जूझते रहे। फिर भी यह तो मानना पड़ेगा कि इस कोरोना-संकट के दौरान भारत की विश्व-छवि बेहतर ही हुई है। पहली बात तो यह हुई कि इस संकट के दौरान सारा भारत एक होकर लड़ रहा है। भारत के पक्ष और विपक्ष का रवैया वैसा नहीं है,जैसा अमेरिका,ब्रिटेन,पाकिस्तान और ब्राजील जैसे देशों में देखने में आ रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सभी दलों के मुख्यमंत्री पूरी तरह साथ दे रहे हैं। दूसरा,भारत की जनता ‘तालाबंदी’ का पालन जिस निष्ठा के साथ कर रही है,वह दूसरे देशों के लिए एक मिसाल बन गई है। विश्व स्वास्थ्य-संगठन ने स्पष्ट शब्दों में भारत की तारीफ की है। तीसरा,भारत ने कोरोना के जांच-यंत्र और करोड़ों मुखपट्टियां तैयार कर ली हैं। भारत से कुनैन की करोड़ों गोलियां अमेरिका समेत ५५ देशों ने आग्रहपूर्वक मंगवाई हैं। एक अर्थ में भारत को पहली बार विश्व-त्राता का विहंगम रुप मिला है। चौथा,भारत सरकार ने हजारों प्रवासियों को विदेशों से भारत लौटाने में जो मुस्तैदी दिखाई है,उसकी भी सराहना हो रही है। पांचवा,दुनिया को आश्चर्य है कि १४० करोड़ लोगों के इस विकासमान राष्ट्र में कोरोना का प्रकोप इतना कम क्यों हो रहा है ? सारी दुनिया में यह चर्चा का विषय है। छठा,भारतीय भोजन में पड़नेवाले मसाले घरेलू औषधियों का काम कर रहे हैं। विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय भी इसीलिए कोरोना के शिकार कम हो रहे हैं। आयुर्वेद का डंका सारे विश्व में बज रहा है। सातवां,भारत ने दक्षेस राष्ट्रों को कोरोना के खिलाफ सावधान करने की पहल की और दक्षेस-कोष में बड़ी राशि दान की। प्रधानमंत्री दक्षेस-राष्ट्रों के नेताओं से निरन्तर संपर्क में है। पड़ौसी देशों पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ रहा है। आठवां,जमाते-तबलीगी के कारण कोरोना को जबरन हिंदू-मुस्लिम रुप दिया जा रहा है लेकिन सरकार ने उसे ज़रा भी प्रोत्साहित नहीं किया है। तबलीग के सरगना मौलाना साद को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है,लेकिन साधारण मुसलमान मजदूरों,दुकानदारों और साग-सब्जीवालों के साथ जो दूरियां बनाई जा रही हैं,उसकी आलोचना पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय इस्लामी संगठन कर रहे हैं,पर वे यह क्यों नहीं देख रहे हैं कि मुसलमानों को इतना गुमराह कर दिया गया है कि वे उनका इलाज करनेवाले चिकित्सकों और नर्सों को मार रहे हैं। नौवां,दुनिया का कोई भी देश कोरोना को लेकर भारत पर वैसे आरोप नहीं लगा रहा है, जैसे चीन और अमेरिका पर लग रहे हैं। दसवां, भारत सरकार ने चीन जैसे देशों के विनियोग पर कई प्रतिबंध लगा दिए हैं ताकि वे भारतीय कंपनियों पर कब्जा न कर सके। ग्यारहवां,विश्व-व्यापार में चीन को जो धक्का लगनेवाला है,उसका फायदा भारत को जरुर मिलेगा। कुल मिलाकर कोरोना के संकट के दौरान विश्व में भारत की छवि ऊंची उठी है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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