अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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कर्ज और बेकारी से परेशान एक व्यापारी द्वारा खुद ही सुपारी देकर अपनी हत्या इस उम्मीद में करवाना कि बाद मरने के उसके परिवार को बीमा राशि मिल जाएगी,को आप क्या कहेंगे ? तालाबन्दी
में काम-धंधा खोने के बाद उपजी लाचारी की पराकाष्ठा,निराशाजनित सोच में छिपी परिवार की चिंता या फिर अवसाद की इन्तेहा ? इस वक्त जब पूरा देश और खासकर मीडिया अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी को लेकर विहल हुआ जा रहा है,लगभग उसी समय देश की राजधानी दिल्ली के कर्ज में डूबे युवा व्यापारी ने बीमा राशि से अपनी ‘गरीबी दूर करने’ की ‘पवित्र मंशा’ से खुद की ही हत्या करवा ली,ताकि उसके मरने के बाद मिलने वाली १ करोड़ की रकम से परिजनों की तो गरीबी दूर हो सके। यह घटना अपने-आपमें भीतर तक झकझोर देने वाली है,चूंकि मृतक व्यापारी के साथ कोई चकाचौंध नहीं जुड़ी थी, इसलिए उसकी इस विवशताजनित ‘आत्महत्या’ पर किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया,सिवाय एक ‘आपराधिक प्रकरण’ मानने के। दरअसल,यह पूरा मामला हैरान करने वाला है। इसलिए भी,क्योंकि कोरोना
–तालाबन्दी
के दौरान देश ने भुखमरी और लाचारी के कई मार्मिक दृश्य देखे और जिंदगी की जद्दोजहद में लोगों को खटते देखा और देख रहे हैं,लेकिन दिल्ली का यह मामला नाटकीयता की हद तक कचोटने वाला है। पिछले दिनों दिल्ली पुलिस को एक कारोबारी की हत्या की खबर मिली थी। जांच के बाद चौंकाने वाली जानकारी सामने आई कि,मृत व्यापारी ने खुद ही अपनी मौत की साजिश रची थी। पुलिस को एक शख्स की लाश पेड़ से लटकी मिली थी। इसके पहले एक महिला ने पुलिस थाने में शिकायत की थी कि किराने का थोक व्यवसाय करने वाले उसके ३७ वर्षीय पति दुकान से लौटकर नहीं आए। गौरव कारोबार में घाटे के कारण अवसाद में था। पूछताछ में पुलिस को पता चला कि ‘गायब’ होने से पहले पति गौरव ने एक लड़के से फोन पर बात कर अपनी हत्या की सुपारी उसे दी थी। सौदा ९० हजार में तय हुआ था। पहचान बताने के लिए गौरव ने खुद ही हत्यारों को व्हाट्सएप पर अपनी तस्वीर भी भेजी थी। जैसे ही गौरव पहुंचा,एक नाबालिग सहित ४ आरोपियों ने गर्दन में फंदा डाल कर उसे पेड़ से लटका दिया। गौरव ने यह ‘इच्छा मरण’ इसलिए स्वीकार किया,क्योंकि वह नहीं चाहता था कि परिवार भी कर्ज में डूबा रहे। उल्टे इस तरह मर जाने के बाद पत्नी व परिजनों को जीवन बीमे की १ करोड़ की राशि मिल सकती थी। जीवन बीमा
इसलिए किया जाता है कि,अगर आपकी असमय मृत्यु हो जाए तो परिवार के सामने अचानक आन पड़े आर्थिक संकट से निपटने के लिए बीमा की रकम हाथ में आ जाए,पर लोगों ने इसका भी बड़े पैमाने पर ‘दुरूपयोग’ करना शुरू कर दिया है। हालांकि,यह कोई पहला प्रकरण नहीं है। मध्यप्रदेश में पिछले साल जनवरी में हिम्मत पाटीदार नाम के व्यक्ति ने इससे भी एक कदम आगे जाकर साजिश रची थी। इस पर काफी राजनीतिक बवाल भी मचा था। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान(तब ‘पूर्व’ थे)ने हिम्मत को श्रद्धांजलि भी दी थी,पर पुलिस जांच में ये ‘हत्या’ पूरी तरह सुनियोजित फर्जीवाड़ा निकला। खुलासा हुआ कि हिम्मत ने २० लाख की बीमा राशि के लिए अपने ही खेत के मजदूर की हत्या कर लाश का चेहरा बिगाड़ दिया और उसे अपने कपड़े पहना दिए। तब विपक्ष में बैठी भाजपा ने इसे राज्य में कानून-व्यवस्था बदतर होना बताया था। जांच में पता चला कि ‘हत्या’ के समय से ही हिम्मत के खेत का एक मजदूर भी लापता है। शुरू में पुलिस ने उसी को हत्या का आरोपी माना था,लेकिन जब हिम्मत की डायरी से बीमा संख्या आदि की जानकारी मिली और फोन का सारा डाटा गायब मिला तो शक हुआ। डीएनए जाँच से सबित हुआ कि मृतक हिम्मत न होकर नौकर मदनलाल है। हिम्मत ने गलती यह की थी कि मृतक मदनलाल को बाकी कपड़े तो अपने पहना दिए,लेकिन अंडरवियर उसी की रहने दी,जिसके आधार पर मदनलाल की पत्नी ने उसे पहचान लिया। हिम्मत ने भी बैंक से भारी कर्ज ले रखा था,जिसे वह फर्जीवाड़ा कर बीमे की राशि से चुकाना चाहता था। इसी तरह राजस्थान के भीलवाड़ा में भी पिछले साल एक फाइनेंसर ने ८० हजार रू. की सुपारी देकर खुद की हत्या करवाई,ताकि परिवार को ५० लाख की बीमा राशि मिल सके। यह भी आर्थिक तंगी में था। अवसाद के चलते उसने खुद हत्यारों को पूरा सहयोग किया। कुछ ऐसा ही मामला हरियाणा के सोनीपत में हुआ था,जहां कर्ज में डूबे दुकानदार सतबीर सिंह ने ढाई हजार रू. में सुपारी देकर खुद को ही गोली मरवा ली थी। मौत के बाद उसकी १० लाख की बीमा राशि परिजनों को मिलने वाली थी। इसके बदले में अपनी हत्या के लिए उसने ६० हजार रू. में सुपारी दी थी। कोई व्यक्ति परिवार का पेट पालने के लिए खुद अपनी मौत की साजिश न सिर्फ रचता है,बल्कि उस पर अमल भी करता है,इसे आप क्या कहेंगे ? परिवार के प्रति सहानुभूति अथवा बेईमानी का एक कलंक उनके माथे पर हमेशा के लिए छोड़ जाना ? वैसे भी हर साल बीमा कम्पनियों को लाखों करो़ड़ रूपए का नुकसान ऐसे फर्जी दावों के कारण होता है। पिछले साल छपी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में २०१९ में फर्जी बीमा दावों के कारण बीमा कम्पनियों को ४५ हजार करोड़ रू. का फटका लगा था। इसकी एक वजह इस तरह के फर्जी दावों को रोकने के लिए देश में कठोर बीमा कानून की कमी भी है। फर्जी दस्तावेजों के दम पर बीमा दावा करने से भी ज्यादा विचलित कर देने वाला मामला बीमा राशि प्राप्त करने के लिए खुद की जिंदगी को ही दांव पर लगा देना हद दर्जे की मूर्खता और लाचारी है। सवाल सिर्फ इतना ही है कि हम और हमारा समाज अब किस दिशा में जा रहा है ? ऐसी ‘मौतें’ कोरोना से होने वाली मौतों से भी ज्यादा डरावनी और इंसानी पतन की कहानी कहने वाली है। कहते हैं कि मनुष्य अति अवसाद की स्थिति में ही अपना जीवन समाप्त करने का बहुत बड़ा फैसला करता है,लेकिन ऐसी ‘आत्म-हत्या’ तो पूरे समाज के लिए ही एक कलंक है। यह व्यवस्था की निष्ठुरता से उपजी विवशता तो है ही,अनमोल जीवन के प्रति भी गद्दारी है। क्या ऐसी मौत से जीवित बचे बाकी परिजनों को सच्ची खुशी मिल सकती है,और वह वांछित रकम भी आश्रितों को फल सकती है ? जरा सोचें।