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जुबान पर चढ़ जाती है छंदयुक्त कविता -डॉ. शर्मा

आनलाइन दोहा एवं घनाक्षरी कार्यशाला

उज्जैन(मप्र)।

कविता में यदि छंद का समावेश हो तो वह पाठकों और श्रोताओं द्वारा लम्बे समय तक याद रखी जाती है। हमारी वाचिक परम्परा के गीत और काव्य इसी प्रकार के हैं। मध्यकालीन सन्तों और कवियों की रचनाएँ आज भी कंठानुकंठ जीवित हैं। दूसरी ओर छंदहीन रचना के भाव ही रह पाते हैं,कविता नहीं याद रहती। नए कवि छन्द और लय के महत्त्व को जानें।
यह बात राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना(उज्जैन) द्वारा आनलाइन दोहा और घनाक्षरी की राष्ट्रीय कार्यशाला में मुख्य अतिथि डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा(हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक,विक्रम विश्वविद्यालय,उज्जैन) ने कहीl कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. प्रभु चौधरी(संचेतना-राष्ट्रीय अध्यक्ष) ने कहा कि कोरोना के इस संक्रमण काल में संचेतना ऐसे रचनात्मक आयोजन कर सभी को घर बैठे कुछ न कुछ लाभ प्रदान कर रही है।
कार्यक्रम में दोहा प्रशिक्षक साहित्यकार जयंत जोशी(पूर्व प्राचार्य) ने अपने व्याख्यान में दोहों का संपूर्ण विधान बताते हुए कहा कि दिखने में भले ही दोहे छोटे दिखाई देते हैं,किन्तु इनके भाव बड़े गहन और बड़े होते हैं। विभिन्न समयकाल में कवियों ने सम-सामयिक दोहों का सृजन कर जनता को जागरुक किया है।
घनाक्षरी छंद के प्रशिक्षक कवि दिनेश पाठक(इंदौर) ने कहा कि घनाक्षरी एक कवित्त छंद है,जो यदि लय और प्रवाह में बोला जाए तो कवि को लोकप्रिय बना देते हैं।‌ इन्होंने मनहरण घनाक्षरी,जलहरण घनाक्षरी आदि का उदाहरण सहित विधान बताया।

कार्यशाला में मध्यप्रदेश,महाराष्ट्र,उत्तरप्रदेश आदि राज्यों के ४० से अधिक प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया।‌ कार्यक्रम में रघुवीर सोलंकी और संयोजक राम शर्मा परिंदा की प्रमुख भूमिका रही।