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पिंजरे के पंछी

सपना सी.पी. साहू ‘स्वप्निल’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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यह दुनिया इक पिंजरे सी,
काया, माया के संबंध है
जब तक हम भौतिक देह,
तब तक ही मोह बंधन है।

हम आत्मा रूप में पंछी,
एक दिन यह जगत छोड़ेंगे
यह शाश्वत सत्य है बड़ा,
पिंजरे से सब मुख मोड़ेंगे।

पर पहले जग भलाई करते,
शुभता से स्वयं को जोड़ेंगे
अच्छे कर्मों को करते रहेंगे,
जीवन सार्थकता से भोगेंगे।

अध्यात्म-ध्यान से नाते निभा,
सुख-दु:ख में सबके साथ हो लेंगे
इस तरह हम पिंजरे के पंछी,
स्वयं की स्मृति लोगों से जोड़ेंगे।

जगत को अच्छाइयाँ लौटाकर,
तब बंधनों से मुक्त हो विचरेंगे।
और जब जाएंगे इस दुनिया से,
तब, हम सबको रोता छोड़ेंगे॥

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