योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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अयोध्या(उप्र) एक अंतरराष्ट्रीय स्थल बन रहा है,क्योंकि यहाँ राम-जन्मभूमि पर प्रसिद्ध मंदिर बन रहा है। आज महात्मा बुद्ध की ज्ञान-स्थली बोधगया का नाम दूर-दूर के देशों तक फैला हुआ है और कई देशों के मंदिर-पैगोडा वहाँ बने हुए हैंl उनमें दर्शन-पूजा करने के लिए विदेशी यात्री वहाँ आते रहते हैं तथा यात्री देखने के लिए भी आते हैंं ही,उसी तरह से और उससे भी बढ़-चढ़कर श्रद्धालु राम मंदिर देखने और राम जन्मभूमि देखने भी अयोध्या आएंगे ही, जहाँ रेल-बस मार्ग का विकास हो ही रहा है,हवाई-मार्ग की सुविधा बढ़ाने के निमित्त वहाँ हवाई-अड्डा भी बनने वाला है।
अथर्ववेद के १०वें मंडल के दूसरे सूक्त में कहा गया है-अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है,”अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या” और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है-अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या। तस्यां हिरण्मयः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः॥ (अथर्ववेद -१०.२.३१)
रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग १४४ कि.मी) लम्बाई और तीन योजन (लगभग ३६ कि.मी.) चौड़ाई में बसी थी। कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। अयोध्या मूल रूप से हिंदू मंदिरोंं का शहर है। यहां आज भी हिंदू धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहां चौबीस तीर्थंकरों में से ५ का जन्म हुआ था। क्रम से पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ जी, दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी,चौथे तीर्थंकर अभिनंदननाथ जी,पांचवे तीर्थंकर सुमतिनाथ जी और चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ जी। इसके अलावा जैन और वैदिक दोनों मतों के अनुसार भगवान रामचन्द्र जी का जन्म भी इसी भूमि पर हुआ। उक्त सभी तीर्थंकर और भगवान रामचंद्र जी सभी इक्ष्वाकु वंश से थे। इसका महत्व इसके प्राचीन इतिहास में निहित है,क्योंकि भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतापी क्षत्रियों (सूर्यवंशी) की राजधानी यही नगर रहा है। उक्त क्षत्रियों में दाशरथी रामचन्द्र अवतार के रूप में पूजे जाते हैं।
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायण में वर्णन किया गया है कि ‘कोशलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान्।
निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूत धनधान्यवान्ll
अयोध्या नाम नगरी तत्रासिल्लोकविश्रुता।
मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम्ll’
अर्थात्,’कोशल नाम से प्रसिद्ध एक बड़ा जनपद है,जो सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है। वह प्रचुर धन-धान्य से सम्पन्न,सुखी,समृद्धशाली है।
उसी जनपद में अयोध्या नाम की एक नगरी है,जो समस्त लोकों में विख्यात है। उस पुरी को स्वयं महाराज मनु ने बनवाया और बसाया था।
राम-जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने ६७ एकड़ भूमि पर निर्माण के लिए मानचित्र स्वीकृत होने के लिए अयोध्या फैजाबाद विकास प्राधिकरण को भेज दिया हैl इसमें लगभग साढ़े ३ एकड़ भूमि पर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण होगा।
अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भूमिपूजन के साथ ही मंदिर निर्माण का काम शुरू हो चुका हैl नए नक्शे के हिसाब से काफी चीज़ों में बदलाव होना है,मसलन पुराने राम चबूतरे को तोड़ा जा रहा हैl अयोध्या में मंदिर निर्माण का काम चालू है और यह जानकर आश्चर्य होगा कि राम चबूतरा ही राम मंदिर आंदोलन का पूरा इतिहास समेटे हुए हैl जब भी चबूतरे का जिक्र होता है,खुद-ब-खुद मंदिर का जिक्र हो जाता हैl अगर चबूतरे के इतिहास की बात करें तो विवादित ढांचे की दीवार के बाहरी हिस्से में २१ गुना १७ फुट का एक चबूतरा था,जिसे राम चबूतरा कहा जाता था,जहां राम की बाल स्वरूप की एक मूर्ति विराजमान थी और यहां लगभग उतने ही लोग पूजन अर्चन के लिए इकट्ठा होते थे,जितना अयोध्या के अन्य प्रतिष्ठित मंदिरों में होते थेl मंदिर-मस्जिद विवाद की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने सबसे पहले इसी राम चबूतरे को रामजन्म स्थान माना थाl आने वाले दिनों में शायद ही किसी को चबूतरे के अस्तित्व का पता चलेगा,क्योंकि जिस जगह यह है,उस जगह आने वाले दिनों मे भव्य राम मंदिर दिखाई देगाl
राम जन्मभूमि परिसर में राम मंदिर के अलावा क्या-क्या होगा ?,ये सवाल हर किसी के मन में हैl ६७ एकड़ भूमि पर निर्माण की कड़ी में लगभग साढ़े ३ एकड़ भूमि पर मंदिर तथा शेष भूमि में से कुछ भूमि पर लोग राम के जीवन चरित्र को आत्मसात करें,इसलिए रामकथा कुंज की स्थापना की जाएगी, जिसमें राम के जन्म से लेकर गुप्त होने तक के जीवन चरित्र को मूर्तियों के माध्यम से दर्शाया जाएगाl इसके अलावा नक्षत्र वाटिका होगी,जिसमें नक्षत्रों के अनुरूप पेड़ों को लगाया जाएगाl इसके अलावा शेषावतार का मंदिर,गणेशजी का मंदिर,लक्ष्मण जी का मंदिर समेत अन्य मंदिरों का निर्माण किया जाएगाl ऐसा नहीं कि,राम जन्मभूमि परिसर में राम मंदिर निर्माण तक ही योजना बनाई गई है,इससे इतर अयोध्या को पर्यटन के नक्शे पर प्रमुख स्थान देने के लिए पूरी योजना बनाई गई हैl इसके लिए चाहे विमान तल का निर्माण हो,सड़कों का चौड़ीकरण हो, या फिर ८४ कोसी परिक्रमा मार्ग के भीतर विकास कार्य हो,सभी को लेकर तेजी से काम चल रहा है और अयोध्या को धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी के रूप में विश्व पटल पर स्थापित करने की पुरजोर कोशिश भी चल रही हैl अयोध्या तो शाश्वत ख्याति का था ही,अब नए आयाम लेकर अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति की ओर भी अग्रसर हो रहा है।
परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”