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नवरात्रि में जसगीत का महत्व और छत्तीसगढ़

डॉ.जयभारती चन्द्राकर भारती
गरियाबंद (छत्तीसगढ़)

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माता फूल गजरा,गूंथव हो मालिन के देहरी फूल गजरा...,भारतवर्ष में नवरात्रि पर्व को वर्ष में २ बार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और देवी की आराधना की जाती है। वर्ष में ४ नवरात्रियां होती है जिनमें २ नवरात्रि गुप्त अथवा सुप्त नवरात्रि कहलाती है और २ नवरात्रि जागृत नवरात्रि कहलाती है। जागृत नवरात्रों का बड़ा महत्व है। नवरात्रों में चैत्र नवरात्रि या वासंतीय नवरात्रि और क्वांर(आश्विन) अथवा शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।
चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिवस से हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का प्रारंभ माना जाता है। विक्रम संवत् चैत्र शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से नौ दिन नवरात्रि में देवी दुर्गा और उनकी शक्तियों की पूजा आराधना की जाती है और नौ दिन अखंड दीप प्रज्वलित किया जाता है। सतयुग का आरंभ इसी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माना जाता है। चैत्र नवरात्रि के इस मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ दिन नवरात्रि देवी शक्ति दुर्गा और उनकी शक्तियों की पूजा आराधना की जाती हैl

चैत्र नवरात्रि के नवमी के दिन भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। देवी की आराधना और श्रीराम का जन्मोत्सव से जन-मन के हृदय में नई ऊर्जा का संचार होता है। यह वासंतीय नवरात्रि बसंत ऋतु का समापन और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का उत्साह है,जो प्रकृति परिवर्तन के साथ ही जन-मन को आनंदित कर देता है।
शक्ति की पूजा हिंदू धर्म की परम्परा रही है,जो आज भी आस्था और विश्वास के साथ इन नवरात्रि में शक्ति की पूजा कर देवी माता से शक्ति प्राप्त की जाती है। नवरात्रों में ३ देवियों-धन की देवी लक्ष्मी,बुद्धि की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा के ९ रूपों की नौ दिन,९ शक्तियों की पूजा-अर्चना की जाती है।
इन शारदीय और वासंतीय नवरात्रियों को छत्तीसगढ़ के संदर्भ में जोड़कर देखें,तो यहां वासंतीय और शारदीय (चैत्र और क्वांर) नवरात्रों में देवी माता की पूजा-अर्चना और सेवा सत्कार की जाती हैl विशेष रूप से जसगीतों के माध्यम से ९ दिन माता की सेवा-आराधना मंदिरों तथा घरों में की जाती है। अखंड ज्योति जलाने के साथ ही मंदिरों,पंडालों और घरों में जवारा बोया जाता है। यह जवारा गेहूँ और जौ से बोया जाता है,साथ ही कलश स्थापना की जाती है।
नवरात्रि के प्रथम दिवस से ही जवारा बोया जाता है और नवमी को उसको बड़े उत्साह और आनंद से जसगीत,सेवागीत गाकर तथा ताना-बाना लिए ढोल-नगाड़ा बजाकर विसर्जित किया जाता है। यहां नवरात्रि में हर दिन जसगीत गाया जाता हैl जवारा के जस गीत में देवी धनैया और देवी कोदैया की आराधना की जाती है;देवी धनैया और देवी कोदैया क्षेत्रीय स्तर की लोक माताएं है। इन देवियों को फसलों की देवी भी कहा जाता है,क्योंकि छत्तीसगढ़ धान और कोदो फसल के लिए प्रसिद्ध है। दोनों देवियां अमूर्त है,जिसे जसगीतों के माध्यम से उजागर किया गया है। जसगीत में ये दोनों माताएं,दुर्गा माता की गणिकाएं तथा सेविकाएं रूप में पूजी जाती है। लोकगीतों में देवी दुर्गा मूल मातृका के रूप में और बूढ़ी माता या बूढ़ी दाई के रूप में पूजी जाती है।
जवारा के समय विशेष रूप से इस जसगीत को गाया जाता है-
लिमवा के डारा म गड़ेला हिंड़ोलवा... कवन ह झूले कवन ह झूलाये, कवन ह देखत आय। बूढ़ी माई झूले,कोदैया माय झुलावे, धनैया माय देखत आय...l' नवरात्रि के प्रथम दिवस कलश स्थापना के समय इस जसगीत को गाया जाता है- 'सिंह सवारी चढ़ी आवे,भवानी माँ,सिंह सवारी चढ़ी आवे हो माय..., जो मय जानतेव मोरो मइया आये हे,मोरो मइया आये हे,मोरो दुरगा आये हेl
छत्तीसगढ़ में नवरात्रों में पंचमी और अष्टमी का बड़ा महत्व है। पंचमी के दिन माता का विशेष श्रृंगार किया जाता है और शीतला मंदिर में विशेष माता का श्रृंगार कर इस दिन से ही महिलाओं को मंदिर में प्रवेश दिया जाता है। पंचमी पर विशेष जसगीतों में यह जसगीत गाया जाता है-
‘माता फूल गजरा गूंथव हो मालिन के देहरी,
हो फूल गजरा।
काहेन फूल के गजरा काहेन फूल के हार,
काहेन फूल के माथ मकुटिया सोलहोंं सिंगार…
चंपा फूल के गजरा चमेली फूल के हार,
जसवंत फूल के माथ मकुटिया,सोलहों सिंगार…
माता फूल गजरा…।’
इस तरह से श्रृंगार जसगीतों से देवी माता की सेवा की जाती है। अष्टमी के दिन विशेष हवन पूजन किया जाता है। जसगीत,जगराता के विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। माता दुर्गा और देवी की समस्त शक्तियों की सेवा-सत्कार से जीवन में उल्लास का संचार होता है और घर-परिवार में सुख-शांति का आगमन होता है।तभी तो,नवरात्रि पर्व में छत्तीसगढ़ प्रदेश के मंदिरों,पंडालों,और घरों में देवी जसगीतों की गूंज नौ दिन नवरात्रों में गूंजने लगती है।

परिचय-डॉ.जयभारती चन्द्राकर का साहित्यिक उपनाम `भारती` है। जन्म १८ जनवरी १९६९ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। वर्तमान में आपका बसेरा गरियाबंद (छग) स्थित सिविल लाईन में और स्थाई पता मठपारा,रायपुर है। हिन्दी,अंग्रेजी और छत्तीसगढ़ी भाषा जानने वाली भारती ने एम.ए.(हिन्दी), एम.एड.,एम.फ़िल(भाषा विज्ञान) एवं पी-एच.डी(हिन्दी)की पढ़ाई की है। कार्यक्षेत्र-प्राचार्य (शासकीय नौकरी) का है। इनकी लेखन विधा-गीत, कविता,लेख,लघु कथा,कहानी सहित नाटक, प्रहसन,संस्मरण आदि है। छत्तीसगढ़ी गद्य लेखन(एक परिचय, प्रथम संस्करण) प्रकाशित है तो डॉ.सत्यभामा आड़िल के छत्तीसगढ़ी, गद्य साहित्य में स्त्री विमर्श(प्रथम संस्करण),शहीद के गांव (छत्तासगढ़ी कहानी संकलन) आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको राज्य स्तरीय छत्तीसगढ़ी कहानी (पारंपरिक लोककथा लेखन प्रतियोगिता २००९) में प्रथम पुरस्कार,प्रतिभा सम्मान कवर्धा (छ.ग.) और छत्तीसगढ़ी साहित्यकार (स्व.श्रीमती सुशीला देवी नायक सम्मान)राज्य स्तरीय साहित्यकार सम्मान २०१७ मिले हैं। ब्लॉग पर भी सक्रिय डॉ.चंद्राकर की विशेष उपलब्धि-गायन और शिक्षा के क्षेत्र में है। लेखनी का उद्देश्य-आत्म संतुष्टि एवं साहित्य में रूचि होकर साहित्य से समाज में बदलाव लाना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-जयशंकर प्रसाद,महादेवी वर्मा, प्रेमचंद,गजानंद माघव मुक्तिबोध, निराला और पंत हैं। जीवन में प्रेरणा पुंज-माता-पिता स्व.स्नेहलता चन्द्रा-श्याम लाल चन्द्रा,स्व.के. चन्द्राकर, और साहित्यकार डॉ.शैल चन्द्रा है। विशेषज्ञता-हिन्दी साहित्य एवं भाषा साहित्य तथा छत्तीसगढ़ी साहित्य एवं भाषा की है। देश व हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“मेरा देश भारत अनेकता में एकता,अखण्डता का है। धर्म निरपेक्ष एवं विश्व बंधुत्व की भावना से युक्त है। मुझे मेरे देश पर नाज़ है। मेरी जन्मभूमि हर बार भारत हो,यही मेरी अभिलाषा है। हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है। विशाल भारत में अनेक भाषाएं बोली और समझी जाती हैं,किन्तु कुछ हिन्दी भाषी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों में यदि हम भ्रमण हेतु जाते हैं तब अपने ही भारत देश में हम पराया महसूस करते हैं। कन्नड़,तेलगु,मलयालम आदि भाषी राज्यों में हिन्दीभाषा न कोई समझता है,न कोई बोलता । यहाँ अंग्रेजी हम समझते-बोलते हैं,तो ठीक हैं अन्यथा राष्ट्रभाषा की विड़बंना दिखाई देती है। मुझे लगता है कि भारत के सभी राज्यों में हिन्दी भाषा अनिवार्य भाषा होनी चाहिए। इसका पठन-पाठन विशेष रूप में किया जाना चाहिए,तभी हम स्वतंत्र भारत में निर्भय होकर भ्रमण कर सकेंगे और अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता खत्म हो जायेगी।”