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कृषि-कानूनःकांग्रेस का शीर्षासन

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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संसद द्वारा पारित कृषि-कानूनों के बारे में कांग्रेस दल ने अपने-आपको एक मज़ाक बना लिया है। इस मुद्दे पर कांग्रेस शीर्षासन की मुद्रा में आ गई है,क्योंकि उसने अपने २०१९ के चुनाव घोषणा-पत्र में खेती और किसानों के बारे में जो कुछ वायदे किए थे, वह आज उनसे एकदम उल्टी बात कह रही है। सोनिया गांधी कांग्रेसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कह रही हैं कि,वे केन्द्र सरकार के कानून की अनदेखी करें और मंडी व्यवस्था को पहले से अधिक मजबूत करें। राहुल गांधी ने कहा है कि मोदी सरकार ने किसानों को यह मौत की सजा दी है। कांग्रेसी प्रांतों की सरकारें अपने किसानों को भड़काने में जी-जान से जुटी हैं। इस कानून के विरुद्ध वे सर्वोच्च न्यायालय में भी जानेवाली हैं। यह मांग तो उचित हो सकती है कि,किसानों की फसल के न्यूनतम मूल्य को कानूनी रुप दिया जाए,ताकि उन्हें बड़ी-बड़ी निजी कम्पनियां ठगने न पाएं,लेकिन कांग्रेसी अपने घोषणा-पत्र को जरा ध्यान से पढ़ें। उसके किसानों संबंधी वायदों में ११ वां-१२ वां वायदा वह है,जिसे सरकार लागू कर रही है। उनमें साफ-साफ कहा गया है कि सत्तारुढ़ होने पर कांग्रेस ‘मंडी-व्यवस्था (एपीएमसी एक्ट) को खत्म करेगी और कृषि-वस्तुओं के निर्यात और अन्तरराज्यीय प्रतिबंधों को एकदम हटा देगी।’ यह सरकार तो मंडी-व्यवस्था को कायम रखे हुए है और वह किसानों को न्यूनतम मूल्य भी देने का दृढ़ता से वायदा कर रही है। वह तो उन्हें सिर्फ खुले बाजार में अपना माल बेचने की छूट दे रही है,ताकि वे ज्यादा पैसा कमा सकें। कांग्रेस जिसे महापाप कह रही है,और जिसे करने का वायदा उसने खुद किया था,वह तो यह सरकार नहीं कर रही है। फिर कांग्रेस इतनी चिल्ल-पों क्यों मचा रही है ? इसीलिए कि,इस लकवाग्रस्त दल को यह भ्रम हो गया है कि देश का किसान तो सीधा-सादा है। उसे गलतफहमी का शिकार बनाना आसान है। किसानों से कहा जा रहा है कि देश के बड़े पूंजीपति उन्हें अपना नौकर बना लेंगे,उपज के पैसे कम देंगे और मंडियां वीरान हो जाएंगी। उन्हें यह नहीं बताया जा रहा है कि देश की कुल उपज का सिर्फ ६ प्रतिशत मंडियों में बिकता है,जिस पर ८ प्रतिशत तक कर सरकार और आढ़तिए खा जाते हैं। अब किसान यदि चाहे,तो इससे मुक्त होगा। उसकी उपज को दुगुना-चौगुना करने और आधुनिक बनाने के लिए उसे बाहरी साधन उपलब्ध रहेंगे। इसके बावजूद यदि किसान की उपज कम होती है या उसे ठगा जाता है तो क्या हमारी संसद मुखपट्टी (मास्क) लगाए बैठी रहेगी ? तब इस सरकार को दुगुनी रफ्तार से दौड़ लगाकर किसान को बचाना होगा। वह बचाएगी ही,क्योंकि हजार-दो हजार कम्पनियों के नोटों से नहीं,५० करोड़ किसानों के मतों से वह फिर सत्ता में आ पाएगी।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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