शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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आँगन की फुलवारी को महकाती हैं बेटियाँ,
माँ की बहुत दुलारी हो जाती हैं बेटियाँ।
बेटा-बेटी होते माँ की आंख के तारे,
घर में सभी पे प्यार लुटाती हैं बेटियाँ।
आते हैं जब कभी भी माँ की आँख में आँसू,
उन आँसूओं का मोल चुकाती हैं बेटियाँ।
माता-पिता के दर्द को पहचानती है वो,
प्यारी-सी इक हँसी से भुलाती हैं बेटियाँ।
माता कभी भी फर्क दोनों में नहीं करती,
बाबुल की बगिया को महकाती हैं बेटियाँ।
घर का चिराग बेटा है,बेटी है रोशनी,
खुशियों के दीप घर में जलाती हैं बेटियाँ।
इज्जत पर कभी आँच भी आने नहीं देती,
माता-पिता का मान बढ़ाती हैं बेटियाँ।
बेटी,बेटों से कभी भी कम नहीं होती,
दे करके जान फर्ज निभाती हैं बेटियाँ।
बेटा बढ़ाए वंश तो बेटी भी कम नहीं,
दो-दो घरों की लाज बचाती हैं बेटियाँ।
पहले संवारती है वो बाबुल का अँगना,
जाकर पराए घर को सजाती हैं बेटियाँ।
कंधा मिलाकर कंधे से अब बढ़ गई आगे,
मंगल की तरफ पाँव बढ़ाती हैं बेटियाँ॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।