रचना सक्सेना
प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)
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मैं समुंदर में उतरना चाहती,
प्यार में यूँ डूब मरना चाहती।
छोड़ दूँ सारा जहाँ उसके लिये,
याद में उसके सँवरना चाहती।
है खुदा के नाम में उल्फत निहां,
नफरतों सें मैं उबरना चाहती।
चाहती हूँ हरितिमा हो हर तरफ,
फागुनी कुछ रंग भरना चाहती।
दिल दुखाना ही जहाँ में पाप है,
मैं नहीं यह पाप करना चाहती।
प्यार के दो बोल मीठे बोलकर,
इस जहाँ में प्यार भरना चाहती।
कुछ भी हो ‘रचना’ न टूटेगी कभी,
इस अहद पर मैं ठहरना चाहती॥
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