संजय गुप्ता ‘देवेश’
उदयपुर(राजस्थान)
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देखो एक कय़ामत सरीखा,गुजरा यही साल है,
हर एक आदमी किस कदर,यूँ बैचैन बेहाल है।
मानो हर खुशी रूठ कर हमसे,छोड कर भी गई,
अब यह जिंद़गी लग रही हमको मौत-सी काल है।
अब किससे बयां मैं करूँ,अपना भी यही दर्द-ए-दिल,
यहाँ तो दिखे हर जगह,सब तो बेहद निढाल है।
‘कोरोना’ भयानक किधर से आया,बना खौफ़ है,
कब यह खत्म होगा भयानक पल,बढ़ रहा जाल है।
धंधे खत्म होने लगे,कहाँ ये नौकरी भी बची,
रोजी-रोटी का उठा,अब तो माकूल सवाल है।
बस हमने निभा दी कुछ जनों में ही,जश्न की बात भी,
ना कोई खुशी ही हुई,ना वो जादुई धमाल है।
बीता साल अब भी डराता हमको,बहुत ही दफ़ा,
आएगा नया साल खुशियों का,बस यही ख्याल है।
प्रभु वापस कभी साल,ऐसा ना लौट आए कभी,
गम,डर,निराशा,घोर चिंता,बस यह दु:ख-बवाल है।
अब ‘देवेश’ की भी समझ में आया,यही राज़ है,
हम असहाय से हो गए,यह बे-वक्त भूचाल है॥
परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।