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हम तुम्हारे हो चुके

विवेकशील राघव
हाथरस(उत्तरप्रदेश)
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काव्य संग्रह हम और तुम से

प्रेम की बहती नदी के,हम किनारे हो चुके हैंl
तुम हमारे हो चुके हो,हम तुम्हारे हो चुके हैंll

भावना का आचमन कर,प्रीति पावन हो गई हैl
कामनाओं के प्रवाहित,स्वप्न सारे हो चुके हैंll

चाह में राहें छिपी हैं,प्रश्न का हल भी मिलेगाl
अंततः मिलना पड़ेगा;ये इशारे हो चुके हैंll

तुम नहीं थे जिंदगी में,हम प्रखर दिनमान-से थेl
आज शीतल हैं कि जैसे;चाँद-तारे हो चुके हैंll

साधना का पथ कठिन है,पर असंभव भी नहीं हैl
वे हमें साधे हुए हैं,हम सहारे हो चुके हैंll

हम अगर पाषाण हैं तो;प्राण की वे हैं प्रतिष्ठाl
जान वे शायद न पाए,कितने प्यारे हो चुके हैंll