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दीवानगी

सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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दीवानगी में हाय ये क्या कर चुके हैं हम।
ख़ुद अपने दिल से आप दग़ा कर चुके हम।

शर्तें लगा-लगा के रक़ीबों से आप के,
करनी न थी जो,वो भी ख़ता कर चुके हैं हम।

मन्ज़िल हमें मिले न मिले ‘ग़म नहीं मगर,
रहबर ‘से अपनी राह जुदा कर ‘चुके हैं हम।

इस ‘दिल में दर्द पाल के सारे जहाँन ‘का,
ख़ुद अपने ह़क़ में हद से बुरा कर चुके हैं हम।

मिलता नहीं सुकून किसी भी तबीब से,
दर्दे जिगर की लाख दवा कर चुके हैं हम।

गैरों ‘के साथ मिल के दिया है जो आपने,
सौ बार ज़ख़्म वो भी हरा ‘कर चुके हैं हम।

अब इससे बढ़ के और करें भी तो क्या करें,
करनी थी जितनी उनसे वफ़ा कर चुके हैं हम।

क़िस्मत ‘फ़राज़’ उसकी न बदले तो क्या करें,
ले-ले के ‘नाम उसका दुआ़ कर चुके हैं हम॥