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सिसकता किसान

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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उत्तम खेती वाला जिसको,मिला न एक निशान।
अपना अन्न लिए बुग्गी में,जाता दुखी किसान॥

जोड़ रहा था रस्तेभर वो,लगे फसल पर दाम,
बीज खाद बिजली पानी पे,खर्चा हुआ तमाम।
ठीक भाव मिल जाय तो फिर,चुकता करूँ लगान,
अपना अन्न लिए बुग्गी में,जाता दुखी किसान…॥

मंडी में जैसे ही पहुँचा,आये वहां दलाल,
माल देख मुँह को पिचकाया,टेढ़े किये सवाल।
भाव सुने तो रोना आया,टूटे स्वप्न मचान,
अपना अन्न लिए बुग्गी में,जाता दुखी किसान…॥

माल घटे दामों पर बेचा,होकर बहुत अधीर,
सपने बेटी की शादी के,प्रश्न बने गंभीर।
कैसे कन्यादान करूँ अब,बेटी हुई जवान,
अपना अन्न लिए बुग्गी में,जाता दुखी किसान…॥

कोई नहीं सोचता इस पर,सोयी है सरकार,
एमएसपी कानून बने तो,होवे बेड़ा पार।
ऐसा यदि हो जाएगा तो,होगा देश महान,
अपना अन्न लिए बुग्गी में,जाता दुखी किसान…॥

रोता धरती पूत खेत में,सूख हुआ कंकाल,
‘हलधर’ दबा कर्ज़ के नीचे,दल्ले मालामाल।
आग लगे ऐसी खेती को,इससे भली दुकान,
आपना अन्न लिए बुग्गी में,जाता दुखी किसान…॥

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