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ममता बनर्जी का दुःख और सत्ता

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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मुद्दा-पश्चिम बंगाल………

आजकल केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी,चूँकि प्रबल बहुमत में होने और उगता सूरज होने से उसका आकर्षण होना स्वाभाविक हो रहा है। दल का लक्ष्य है पूरे देश को अपनी नियंत्रण में रखना है। इस शुभ कार्य के लिए सामदाम,दंड,भेद नीति से पूरा साम्राज्य स्थापित करना ही मुख्य लक्ष्य होता है,जिसके कुछ उदाहरण जैसे मध्य प्रदेश,गोवा आदि में सफल हुए और कई जगह मुँह की खानी पड़ी,पर चक्रवर्ती बनने का अश्वमेघ का घोड़ा अनवरत दौड़ रहा है। हमारे सम्राट बहुत दूर-दृष्टि रखते हैं,जो ठान लिया उसे पूरा किया। रात में नींद में सपना देखा कि,मोटोरोला मैदान का नाम बदलना है तो आनन-फानन उसका नाम अपने नाम पर रख लिया। और क्यों न हो,जब सपना खुद का हो और जब तक सत्ता में हैं तो जनता,धन-मन सब-कुछ के मालिक वे ही हैं।
अकेला रहने से अनियंत्रित होने से पकवान जैसे अलग-अलग स्वाद का खाने की आदत हो जाती है,इसलिए अपने साथ अपने देशवासी रसोईया भी रहे हैं,जो मनोकुल व्यवस्था करता है, वह राजा की भावभंगिमा को जानता और तोलता है। अब तो दल के नेता,कार्यकर्ता,मंत्री और यहाँ तक कि जनता भी बखूबी परिचित हो चुकी है।
इस समय बंगाल में चुनाव है। वहां पर सत्ता काबिज़ करने के लिए पूरी सरकार के साथ वहां के स्थानीय नेता जी-तोड़ से लगे हैं और जीतना भी सुनिश्चित है। मजे की बात यह है कि, दोनों अकेले हैं। यदि दोनों आपस में समझौता कर लें तो बहुत कुछ समस्या का हल निकल जाएगा। दोनों के एक होने से दोनों के लिए मोदी और दीदी सरकार बन जाएगी।
देश के मुखिया को ममता के साथ हुई दुर्घटना से सहानुभति जरूर है। सहानुभूति में मात्र कष्ट, दुःख,दर्द का अहसास होता है,पर समानुभूति में दर्द दोनों को होता है। हाँ,ममता की पीड़ा का कोई अर्थ नहीं है। कारण सरकार उनकी,अस्पताल, चिकित्सक,पुलिस सब उनकी। यहाँ तक कि उनको लगी चोटें,नकली कारण से उनको चुनाव जीतने के लिए सहानुभूति चाहिए। मुखिया भी सहानुभूति दे रहे हैं,यदि यह सहानुभूति,समानुभूति में बदल जाए तो सब किस्म की लड़ाई खत्म।
भारत वर्ष में एक उदाहरण है जैन साहित्य में-जब भरत चक्रवर्ती बनने चले,तब उनका समाचार उनके भाई बाहुबली के पास पहुंचता है। वे स्वयं अधीनता स्वीकार लेते हैं, पर बाहुबली नहीं स्वीकारते हैं। इस पर युद्ध होता है। तब उनके महामंत्रियों ने सलाह दी कि,यह युद्ध आप दोनों का है,इसलिए आप दोनों करें और ३ प्रकार के युद्ध निर्धारित किए गए। पहला जल युद्ध,दूसरा नेत्र युद्ध और तीसरा मल्ल युद्ध। तीनों युद्ध बाहुबली ने जीते । उसी समय उनके मन में भाव आया कि हम इन भौतिक सुख-साम्रगी के लिए खून के प्यासे हुए, धिक्कार है। और वे आत्मकल्याण के लिए राज्य छोड़कर चले गए। बाद में भरत भी चक्रवर्ती बनकर वैराग्य को प्राप्त हुए,जिनके नाम से भारत वर्ष नाम रखा गया है।
बात सीधी-सी है कि जब ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के सब नेता भाजपा में जा रहे हैं तो यदि मुखिया आपस में विलय कर लें,तो कोई झंझट नहीं होगी।दोनों का एकाधिकार प्रदेश और देश में समान होगा।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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