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‘मर्यादा’ कहानी हो चुकी

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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सभ्यता के मापदंडों को चलो नीचे उतारें।
नग्नता को अब नए श्रंगार शब्दों से पुकारें।

जो फटे कपड़े पहनते मानते खुद को अगाड़ी,
दिव्यतम है देह इनकी पूर्ण श्रद्धा से निहारें।

तन प्रदर्शन हो गया है आजकल फैशन नशीला,
देह इनकी है उसे वो जब जहां चाहें उघारें।

वीरता की बात तो है चीथड़े पहने निकलना,
नग्नता की मूल परिभाषा चलो फिर से सुधारें।

मान लीजे अब फटी-सी जीन्स ही समृद्धि खाका,
आप इनकी सोच के आयाम को भी मत नकारें।

लाज मर्यादा विगत युग की कहानी हो चुकी है,
आधुनिकता के नए परिमाप भाषा में निखारें।

नग्नता में ढीठता की शक्ति का संचार इतना,
लेखिनी ‘हलधर’ डरी है कांपतीं अक्षर कतारें॥