दिनेश कुमार प्रजापत ‘तूफानी’
दौसा(राजस्थान)
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रचना शिल्प:१६-१४ अन्त ३ × गुरु…..
अपने ही घर में सेना से,
पत्थर वाले ऐंठे हैं।
सुकमा में नक्सली जवानों,
की लाशों पे बैठे हैं॥
जाने किस नशे में खो गए,
ये नेता गद्दी वाले।
प्रवक्ता इस तरह बनते हैं,
जैसे हो रद्दी वाले॥
सुकमा में शहीद हुये जो,
किसी बहन के भाई थे।
अपने ही मात-पिता की वो,
ज़िन्दगी की कमाई थे॥
जिस छप्पन इंची सीने से,
बड़े-बड़े घबराते हैं।
फिर भी क्यूँ हमारे सैनिक,
घर में थप्पड़ खाते हैं॥
जज्बा है सब कुछ करने का,
करता-कहता वो मोदी।
पर्वत के चट्टानों से ही,
झरना बहता वो मोदी॥
शीश झुका ‘दिनेश’ नमन करे,
उन सैनिक मतवालों को।
मातृभूमि पर मिटने वाले,
भारत के रखवालों को॥