डॉ.शैल चन्द्रा
धमतरी(छत्तीसगढ़)
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मेरे पिता जी की साईकल स्पर्धा विशेष…..

जब मैं कक्षा छठवीं में पढ़ती थी,तब मेरे पिता जी के पास एक एटलस की डंडी वाली साईकिल थी। वे उसी से दफ्तर जाते-आते थे। उन दिनों लोग साईकिल ज्यादा इस्तेमाल किया करते थे।
हम बच्चे पिताजी की छुट्टी वाले दिन का इंतजार करते थे,क्योंकि रविवार के दिन हमें पिताजी की साईकिल मिल जाती थी। हम सब भाई -बहन उस पर सवारी कर बड़े खुश होते थे। मुझे साईकिल अच्छे से चलाना नहीं आता था। मैं कैंची स्टाइल साईकिल डंडी पकड़कर चलाती और खुश होती थी।
जब पिताजी दफ्तर से लौटते तो साईकिल की कैरियर पर दफ्तर की फाइल दबी रहती और साईकिल की टोकनी में सब्जियां,फल और हमारे लिए मिठाई लाते। उस वक्त हम पिताजी की साइकिल देखते ही दौड़ पड़ते। हम भाई-बहनों में होड़ लग जाती कि कौन पहले साईकिल पकड़ेगा,फिर हम साईकिल की सवारी करने निकल पड़ते।
रविवार को पूरे मोहल्ले में मैं साईकिल रानी हुआ करती। मोहल्ले की अन्य लड़कियां मेरे पीछे-पीछे घूमतीं,ताकि उन्हें भी एकाध बार साईकिल चलाने को मिल जाए।
सच में वो दिन बड़े सुनहरे थे। वो बचपन बड़ा सुहावना था। काश! वो दिन फिर लौट आते। आज मेरे पास ब्रांडेड कार है,पर वो खुशी नहीं मिलती जो पिता जी की साईकिल चलाने में मिलती थी।
परिचय-डॉ.शैल चन्द्रा का जन्म १९६६ में ९ अक्टूम्बर को हुआ है। आपका निवास रावण भाठा नगरी(जिला-धमतरी, छतीसगढ़)में है। शिक्षा-एम.ए.,बी.एड., एम.फिल. एवं पी-एच.डी.(हिंदी) है।बड़ी उपलब्धि अब तक ५ किताबें प्रकाशित होना है। विभिन्न कहानी-काव्य संग्रह सहित राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में डॉ.चंद्रा की लघुकथा,कहानी व कविता का निरंतर प्रकाशन हुआ है। सम्मान एवं पुरस्कार में आपको लघु कथा संग्रह ‘विडम्बना’ तथा ‘घर और घोंसला’ के लिए कादम्बरी सम्मान मिला है तो राष्ट्रीय स्तर की लघुकथा प्रतियोगिता में सर्व प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया है।सम्प्रति से आप प्राचार्य (शासकीय शाला,जिला धमतरी) पद पर कार्यरत हैं।